________________ दरीगुरूदरी गोत्रजेयं पुत्रस्तु षण्मुखः / कथं पोष्याविमौ धिग्मां कामः शस्त्रं विनाऽवधीत् // 5 / 341 // यथा तथा वा निर्वक्ष्यत्यङ्गभूरङ्गना पुनः / दुर्भरा निर्भर्त्यब्धौ मग्नोऽस्मि करवाणि किम् // 5342 // ततो जातमतिः शम्भुविरहासहतामिषात् / भार्ययाभूदभिन्नाङ्गो द्व्युदरीभरणाक्षमः // 5 // 343 // वंशवृद्ध्या विभग्नस्यामनस्यं जनकस्य मे। ध्यात्वेति तनयोप्यस्य प्रपेदे ब्रह्मचारिताम् // 5 // 344 // अपां पावित्र्यदः सर्वदेवपूजाप्रवर्तकः / / ध्वंसको ध्वान्तचक्रस्य साक्षी सकलकर्मणाम् // 5 / 345 // निशाचरजयी दृष्टिसृष्टिसाफल्यकारणम् / . पूज्यः पुरभिदो लोकप्रकाशः पङ्कशोषणः // 5/346 // श्रीदः स्वेष्टसरोजानां कोकशोकापनोदकः / स्वयोधैर्विधुरीकृत्य सूर्योऽप्युल्लेखितोऽमुना // 5/347 // जितेष्वमरमुख्येषु मन्मथेन महर्षयः / भृगुवत्सवशिष्टाद्याः स्वस्थानस्थाश्चकम्पिरै // 5 / 348 // मारस्य मारतो भीता एकैकं महिलाभटम् / गत्यन्तरमपश्यन्तः शरणं ते प्रपेदिरे // 5 / 349 // एवमास्वर्गमास्वभ्रं विश्वं वश्यं विधाय सः / पुण्यरङ्गपुरं ध्वंसबद्धसंधोऽभ्यषेणयत् // 5 / 350 // इतश्च नगरे तत्र शालः सकपिशीर्षकः / अकम्पततरां भाविद्रङ्गभङ्गभयादिव / / 5 / 351 // स्थूलस्थूलाश्रुभिर्व्यक्तमरुदत्पद्रदेवता / स्वाधिकारपरिभ्रंशदुःखाब्धिपृषतोपमैः - // 5 / 352 // 242