________________ चलचित्तकपिः कामकिराता स्त्री नवाटवी / यद्भरागानलो द्रष्टुरपि सर्वस्वमोषति // 5 // 330 // मोहव्याधो भवाटव्यां वागुरां व्यतताङ्गनाम् / आस्तां. मुग्धमृगा यत्र बध्यन्ते विबुधा अपि // 5 / 331 // अलक्ष्यमध्या तमसां मन्दिरं सुन्दरीदरी / विलासाजगरो यत्र पुन्नागानपि चर्वति। // 5 / 332 // बिभेम्यहं तदेताभ्यो मां विमुञ्च तपस्विनम् / इन्द्रोपेन्द्रादिभिः किं ते युद्धश्रद्धा न पूर्यते // 5 / 333 // इति तद्वचसा जातकृपोऽवददिति स्मरः / मा कातर्यं कृथाः शूलिन्मखभित्कालघात्यसि // 5 / 334 // सतीमभूरिप्रसवामपर्णामचलात्मजाम् / महिलामाद्रियस्वैकां मुक्तोऽस्येतावता मया // 5 / 335 // ॐमिति प्रतिपद्याथ भूतनाथस्तथाकरोत् / काले जातेऽङ्गजे भिक्षाशनोद्विग्ना शिवावदत् // 5 / 336 // भिक्षा भवत्यभिख्यायै भिक्षोरेव न गेहिनः / देहि मे देहनिर्वाहक्षमं श्रीकण्ठ ! भोजनम्. // 5 / 337 // सुयोषितेव जन्माहर्नृणां श्लाघ्यं सुवल्भया / तस्यैय तस्व नालस्यभाजो क्वाप्युदयः प्रिय . // 5 / 338 // कृष्णात्प्रार्थय मेदिनी धनपतेर्बीजं बलालाङ्गलम्, कीनाशान्महिषं वृषोऽस्ति भवतः फालः त्रिशुलादपि / शक्ताहं तव भक्तपानकरणे स्कन्दश्च गोरक्षणे, दग्धाहं हर ! भिक्षया कुरु कृर्षि गौरीवचः पातु वः // 5 / 339 // अथ दध्यौ हरो हन्त यत्प्रागुक्तं तदागतम् / स्त्रियो हि लब्धप्रसराः कं न भिन्दन्ति नीरवत् // 5 // 340 // 241