________________ // 5 / 318 // // 5319 // // 5/320 // // 5 / 321 // // 5322 // // 5/323 // करे कापालिकस्येव कपालो मम भाजनम् / चक्रीवत इवाङ्गे मे भसितेनावगुण्ठनम् - भूषा विषधरैर्लम्बमानैर्जीर्णतरोरिव / / सैन्धवस्येव निःस्वस्य मम यानं जरद्गवः अहमीदृगवस्थोपि स्वीकुर्वे वनिताः कथम् / योग्या रत्नाकरस्येव सरितः श्रीमतो हि ताः जटाधराद्विरूपाक्षागुण्डमालावलम्बिनः / मत्तो मृगाक्ष्यस्त्रस्यन्ति मराल्यो जङ्गलादिव शालि सूपं घृतं घोलं वटकान्मण्डकानपि / याचमाना इमा भिक्षाभोजिनं खेदयन्ति माम् चन्दनागुरुकर्पूरकस्तूरीकुङ्कुमादिकम् / . याचमाना इमा भस्मोध्धूलनं खेदयन्ति माम् स्वर्णप्रवालमाणिक्यमुक्ताभूषणमण्डलम् / याचमाना इमा व्यालमालिनम् खेदयन्ति माम् दुकूलक्षौमकौशेयप्रायवासांसिनिर्भरम् / याचमाना इमाश्चर्मवसनं खेदयन्ति माम् केशाध्वदत्तसिन्दूरा स्त्री सधूमानलाञ्चिता / विचेतनः पुमान् यत्र निलीनो याति भस्मताम् वरं व्याघ्री विषधरी या दत्ते मृत्युमेकदा / नित्यं मृत्य्वधिकक्लेशकरी न तु नितम्बिनी वलीतरङ्गिणी हास्यफेनिला स्त्री सरिनवा। यत्र मज्जति यूनां दृग्द्रोणी स्तनतटं गता स्यादेकद्विदृशामेव रात्रिरालोकघातिनी / / नवा नारीनिशा यत्र सहस्राक्षोऽपि मुह्यति 240 . // 5 / 324 / / // 5 / 325 // // 5326 // // 5 / 327 // // 5328 // // 5 / 329 //