________________ // 5 / 306 // // 5 / 307 // // 5 / 308 // // 5/309 // // 5 / 310 // // 5 / 311 // अयं विश्वस्य विश्वस्य संहर्तेति न कौतुकम् / भार्गवोऽमुष्य शिष्योऽपि क्षत्रवंशक्षयं व्यधात् पिनाकशूलखट्वाङ्गधरणव्यग्रबाहुना / अनेन त्वमपि क्वापि कुण्ठशक्तीकृतः श्रुतः तन्मुञ्चामुं गिरिं दूरे वल्मीकमिव सोरगम् / न हि यत्र यशो धर्मो विग्रहः स कदाग्रहः तच्छ्रुत्वा कुपितः काममाक्रुष्ट इव केसरी / कामोऽवादीदहो मन्त्रिन्मा मां भापय मन्मथम् यद्यमुं विषमं मत्वा मुञ्चाम्यद्य कपालिनम् / तदा हन्त हता मोहकुलशौर्यकथाप्रथा मत्प्रभावबृहद्भानावालीढभुवनत्रये / एष पञ्चमुखस्त्यक्तकुशलः शलभायताम् इत्युक्त्वा सोऽकृषच्चापं सहसा सह सायकैः / शूरा हि न विलम्बन्ते वध्यकोटि गते रिपौ . चापेऽधिज्यीकृते तेन संहिते मोहने शरे / दिगम्बरस्तपोध्याननिभृताङ्गोप्यकम्पत मारस्तारं जगौ खण्डपर्शो पाखण्डमुज्झ्यताम् / जगज्जैत्रे मयि क्रुद्धे किं भो ध्यानं तपश्च किम् गिरिणा गुरुणानेन न मृत्योरद्य रक्षसे / . रक्षसे किन्तु मद्दत्तमृगनेत्रापरिग्रहात् व्याजहार हरः श्रीमन्मोहभूपालनन्दन ! / पश्चाद्दद्या इमां बुद्धि पूर्वं शृणु मम श्रियम् मम प्रेतवने वासः प्रेतस्येव निरन्तरम् / भोजनं भिक्षुकस्येव भिक्षया शीतरूक्षया // 5 / 312 // // 5 / 313 // // 5 / 314 // // 5 / 315 // // 5 / 316 // // 5 / 317 // 239