________________ अन्यां वनविहारेण क्लान्तामेकान्तवत्सलः / . विहङ्गिकामिवोदस्य बलवान् सोऽनयद्गृहम् // 5 / 294 // अर्पयन्त्युत्तरीयं स्वं भारभीरुः परा पथि / संव्यानमपि किं दत्से नेति स्मित्वामुना जगे // 5 / 295 // उत्कण्ठितेन तेनैका गोपीगोप्याङ्गवीक्षणे / नीवीं संयमयामासे सख्येव, विगतत्रपा .. // 5 / 296 // एवं तस्मिन् वशं नीते वशायोधैरनन्यजः / अथ न क्वापि मे हारिरस्तीति निरवैष्ट सः // 5 // 297 // कंसारिसारसंहारस्फारदोर्दण्डचण्डिमा / / ततः कृतप्रयाणोऽसौ पुरोऽपश्यन्महाचलम् // 5 / 298 // उच्च: शिलोच्चयः कोऽयं कश्चास्य प्रभुतास्पदम् / तेनेति पृष्टोऽवग् मन्त्री परतन्त्रीकृताङ्गकः // 5 / 299 // शैलः कैलासनामायं केवलस्फटिकोपलः / अकरग्राह्यमुकुरश्चरत्खेचरयोषिताम् / / // 5 / 300 // अस्य मौलौ स्थितः पूर्वाचलस्येव दिवाकरः / अन्धकारातिविध्वंसी शम्भुर्विभ्राजतेतराम् // 5 / 301 // मा दिवोऽवतरन्तीयं पिप्लवत्पृथिवीमिति / गङ्गानेन जटाकूटमालिना मौलिना दधे // 5/302 // अत्राब्धिमथनोद्भूतगरलग्रासलालसे / भेजिरे भोगिनो भूषाभावं भुवनभीषणाः // 5 / 303 // विदग्धस्य जगद्दग्धुमप्येकज्वालयाखिलम् / कुण्डीयतेऽनलस्यास्य नेतुर्ने तृतीयकम् // 5 / 304 // विपक्षचक्षुषामान्ध्यं ये वितन्वन्ति भस्मना / शैवा दैवादभीरोस्ते परिवारोस्य रूक्षवाक् // 5/305 // 238