________________ // 5 / 282 // // 5 / 283 // // 5 / 284 // // 5 / 285 // // 5 / 286 // // 5 / 287 // त्वमेको वयमस्तोकास्त्वं मृदुः कर्कशा वयम् / त्वं बालोऽसि वयं प्रौढाः का स्पर्धास्माभिरस्तु ते दृग्बाणविद्धो दो:पाशबद्धो वाग्भल्लिजर्जरः / उरुसंदंशकाक्रान्तोऽस्माभिस्त्वं कोऽसि केशव ! आसाराशुचिबीभत्सं दर्शयामोऽन्यथा नृणाम् / वयं विद्मश्छद्मयोगानपि त्वं वेत्सि गोप ! किम् अस्मानुपेत्य संगच्छ गच्छ वा तपसे वनम् / विनाङ्गनां गृहे वासं न सहिष्यामहे तव इति तद्वचनैरेंव ग्लानो वीक्ष्य बलं बहु / पद्मनाभः क्षमो नाभूदवस्थातुं पलायितुम् चक्रचापधरोप्युच्चैः स सद्यः समगस्त तैः / . कंसादिध्वंसजां ध्यायन् प्रसिद्धि स्वां मुधा हृदि लास्यं हास्यं कलि केलि कार्यमाणो यदृच्छया / / तैर्न चक्रेशिता चक्रेऽभिमानं स मनागपि / वस्त्राकर्षाञ्चलाक्षेपहस्ताघातपदाहतीः / सोऽपि निर्मितवांस्तेषां चिरं परिचयादभिः यामिन्यां यमुनाकूले शारद्यां शशिरुक्शुचौ / नृत्यन् गोपीगणे गायत्ययं न व्यत्ययं व्यघात् जलस्थलजपद्मानां समं सौरभलोभिनीः / बुध्ध्वा गोपीहरिर्वृन्दावनं ती| यमी ययौ वनतः स्वयमानीतैः कुसुमैः स न्यवीविशत् / कस्याश्चिच्छेखरं मूर्ध्नि देवताया इवार्चकः पुष्पाणि स्वयमादित्सुरुत्तुङ्गतरुशृङ्गतः / निश्रेणाविव तस्यांसदेशे कापि पदं ददौ 237 // 5 / 288 // // 5 / 289 // // 5 / 290 // // 5 / 291 // // 5 / 292 // // 5 / 293 //