________________ // 5 / 246 // // 5 / 247 // // 5 / 248 // // 5 / 249 // // 5 / 250 // // 5 / 251 // चक्रवर्त्यपि भूशकचक्रमौलीकृतक्रमः / . स्त्रीरत्नेन रहः पादावामृशन् किङ्करीकृतः ख्याता जगति ये क्षमापा: प्रतापाकान्तशात्रवाः / कामेनाकुलितास्तेऽपि प्रपन्नाः शरणम् स्त्रियः शिरोभिमानिनां वज्रधरेणापि न नामितम् / नमत्क्रमयुगे रुष्टस्त्रीभिर्निर्लोडितं हठात् महाकुला: कलाभ्यासरुचयः शुचयो द्विजाः / अकार्यन्त भुजिष्याभिर्मार्टिमापानभूमिषु , शक्ताः स्वशक्त्या संरोध्धुं सिन्धुसिंहादिविप्लवान् / त्याजिता एकवाचैव तपः स्त्रीभिस्तपस्विनः अक्षसूत्रपरावृत्तिवृत्तयो ब्रह्मवादिनः / अध्यापिताश्चौर्यरतं स्त्रीभिः सांन्यासिका अपि श्रुतं श्रुतवतां धैर्य धीराणां धीश्च धीमताम् / बलं च बलिनां सर्वं वामाभिः परिवर्तितम् योषिद्योधबलादेवं जयन् युध्वा जगत्त्रयम् / . ब्रह्मलोकं स्मरः प्राप श्रूयमाणश्रुतिध्वनिम् अस्याधीशश्चतुर्वक्त्रो वेदवादी प्रजापतिः / .. पुराणः स पुराणेषु जगज्जनक उच्यते अस्य वर्चस्विनो विप्राः कोटिशः पारिपार्श्विकाः / युक्तो नात्राभियोगस्ते द्विजाः सर्वत्र निर्भयाः एवं स वारितोऽप्यन्यैस्तत्राढौकिष्ट यत्नतः / कामो वारितवामो हीति किं मिथ्या जनश्रुतिः ब्रह्मास्तु सात्त्विको नाम्ना सन्तु वर्चस्विनो द्विजा: / अतिसारेण मभीतिभुवा न पुनरोजसा 234 // 5 / 252 // // 5 / 253 // // 5 / 254 // // 5255 // // 5 / 256 // . // 5/257 //