________________ इत्युक्त्वा ढौकयद्यावद्योषिद्योधानसौ युधे / दूतीभूयागतस्तावद्रागः प्रोचे प्रजापतिम् // 5258 // अकाले मा मृथा धातः स्मरोऽयं विश्वघस्मरः / बलीयसी हि मोहाज्ञा नाधुना कोऽपि मुच्यते // 5 / 259 // कटकेन कलि कुर्वन् पितामह ! न पूर्यसे / सावित्रीयोधमस्यैकं मानं मुक्त्वा नयान्तिके // 5 / 260 / / तं क्रोडीकृत्य भुक्त्वा च चिरं जीव सुखी भव / गर्वं कुर्वन्ति बलिनाक्रान्ता न स्वहितार्थिनः // 5 / 261 // मेने विरञ्चिस्तद्वाचं सावित्री स्वीचकार च / बद्धा एकैकशः सर्वे ब्राह्मणीभिर्द्विजा अपि // 5 / 262 // जितकाशी विकासीव दधन्मधुसुहृन्मुखम् / . ततः प्रचलितोऽपश्यत्पुरः पुरुषमद्भुतम् // 5 / 263 // रामरुग् रचितोरिष्टरत्नैरिव रमापतिः।। कोयं क्रीडति कालिन्द्याः कूले लोकाधिकाकृतिः // 5 / 264 // इति तेनानुयुक्तोथ मागधोऽभिदधे श्रृणु / लोको वैकुण्ठनामास्ति दुरालोको विरोधिनाम् // 5 / 265 // श्रुतिपारायणं नारायणस्तस्यैष नायकः / अन्यपौराणिकैरुक्ता अवतारा अनेकशः // 5 / 266 // उदधाद्वसुधामेष धृत्वा कूर्मवराहताम् / / व्यदारयन्नृसिंहत्वे हिरण्यकशिपोरुरः // 5 / 267 // बटूभूय बलिं बध्वा चिक्षेपायं क्षमातले / गतो भार्गवतां चक्रे धरां निष्क्षत्रियाङ्कुराम् // 5268 // अयं दाशरथीभूय निजघान दशाननम् / स एवायं यदुकुलेऽवतीर्णः कृष्णसंज्ञया // 5 / 269 // 235