________________ // 5 / 150 // // 5 / 151 // // 5 / 152 // // 5153 // // 5 / 154 // // 5.155 // ईर्यासमितिरक्षुत्तं मोहं धर्मरुचेर्मुनेः / करकण्डूऋषेर्भाषासमितिर्यक्षसद्मनि . .. वज्ररेषणा रेखामाप्ता सुरपरीक्षणे / चतुर्थी वल्कलचीरस्य वल्कलप्रत्युपेक्षणे मृद्गतो मोदकानाप्तान् ढाण्ढणेयस्य पञ्चमी। मनोगुप्तिः प्रसन्नेन्दोनिन्दतः कर्मकश्मलाम् मेतार्यस्य च वाग्गुनिः क्रौञ्चमन्तुमजल्पतः / तनुगुप्तिरचलतश्चैलातेयस्य चापदि , यस्याः सख्यो रिपुक्षोदक्षमास्तस्याः श्रुते बले। सुरा अपि शिरो युक्तं धुन्वते संयमश्रियः यस्याः परिणयारम्भादेव दम्भादिभिः समम् / लग्नोपजिह्वतरुवत्क्षेत्ता मोहः क्षणे क्षणे इत्याकर्ण्य विवेकोऽवग् भार्योभयभयातुरः / एतत्तात ! प्रकृत्याहं मसृणो न शृणोम्यपि सति सुतवती धाम्नि जायैका यस्य जीवति / स्वीकुर्वंस्तन्मनः शल्यं परं पापैः स लिप्यते यस्य भार्याद्वयं तस्यावश्यं भ्रष्टं भवद्वयम् / जन्योरन्योन्यमागांसि निढुवानस्य संततम् अनिष्ठितं कलिं कर्तुं कृष्णचित्रकमूलिका / परा पत्नी सुखं भर्तुर्हर्तुं बब्बूलशूलिका सुखार्थं स्वीकृता योषित् द्वितया स्यात्सुखच्छिदे / / ऊर्णायुः कम्बलायात्तश्चीरं चरितुमुत्थितः एकां प्राप्यापरां सन्ध्यां व्रजन् भ्रस्यति भास्करः / एकां मुक्त्वापरां प्राप्तो द्वितीयां क्षीयते शशी 226 // 5 / 156 // // 5 / 157 // // 5 / 158 // // 5 / 159 // // 5 / 160 / / // 5 / 161 //