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________________ ये शुभाध्यवसायाख्या भटस्तस्य बलोत्कटाः / कोटीशः सन्ति सन्तोपि तद्बलं वक्तुमक्षमाः - // 5 / 126 // अमी सर्वेपि निष्णाताः ख्याता धाता न संयुगे / अविसंवादिनो वृत्ति विना स्वाम्यनुवर्तिनः // 5/127 // एवं विवेकभूपस्य पश्यतः संसदं मम / आगत्य सहसा बोधारक्षः पूच्चक्रिवानिति // 5 / 128 / / मयि सन्निहितेऽपि स्वान् पौरान मोहस्य सैनिकाः / बकास्तिमीनिवाकस्मात्कांश्चनादिषत प्रभो // 5129 // केचिद्ववलिरे तेषु तैरात्ता एव केचन / अहो साहसिकारब्धा मोघीभवति न क्रिया // 5 / 130 // श्रुत्वा विवेकवीरस्तत्कोपकम्प्रोष्ठपल्लवः / / अवक् परपराभूतिध्यानभग्नभुजस्मयः // 5 / 131 // द्विषद्विषधराशङ्का यत्र नैव निवर्त्तते / परपराभवायैव प्राभवं तद्व्यधाद्विधिः . .. // 5 / 132 // महारिपुः स मे मोहक्ष्माप: पापनिकेतनम् / भोक्ता त्रिजगतोप्यल्पमेतद्राज्यं जिहीर्षति // 5 / 133 // मां स हिंसितुकामोऽभूत्कृशोऽपि व्याघ्रबालवत् / प्राप्तप्रौढिः पुनः सोढा कथं स्फाति ममाधुना // 5 / 134 // राज्यं चास्ति रिपुश्चास्ति द्वयमेतद्विरुध्यते / तमः समस्तमच्छित्वा किमुदेति दिनेश्वरः // 5 / 135 // सति तस्मिन्महारातौ ममैश्वर्यकथा वृथा / शिरःस्थमुद्गरः कुम्भः कियन्नन्दति मार्तिकः // 5 / 136 // ततः श्रुणु महामात्य ! जात्यरत्नवदुज्ज्वल ! / शुद्धबुद्धिनिधे ! राज्यवल्लिविश्राममण्डप ! // 5 / 137 // 224
SR No.004459
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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