________________ // 4 // 272 // // 4 / 273 // // 4 // 274 // // 4 / 275 // // 4 // 276 // // 4 / 277 // अयं हि मोहभूपालं भेत्तुमेकोपि विक्रमी / तस्य ये सेवकास्तेपि वैरिनिग्रहसाग्रहाः / हिरण्यहरिहस्त्याद्योपदां प्रीतिपदास्य न / केवलं केवलज्ञानी हृत्प्रसत्त्या स तुष्यति अस्य सेवाफलं यच्छत्यप्रमद्वरचेतसाम् / सेवाप्रमादयोर्जातिवैरं गोव्याघ्रवद्यतः बन्दीकृत्य प्रमादेन लक्षशोऽमुष्य सेवकाः / किंकरीचक्रिरे नीत्वा बलान्मोहस्य मन्दिरम् ततो मा दाः प्रमादस्यावकाशं कुलधूर्वह ! / प्रस्तावे चास्य निःशेषं स्वं वृत्तान्तं निवेदये मातुः शिक्षामिमां श्रुत्वा प्रमोदोत्फुल्ललोचनः / विवेकः प्रोचिवानम्ब ! तवाज्ञा मेऽस्तु मूर्धनि गर्भधारणपोषाभ्यां मातृत्वं पशुभिः समम् / . स्तुत्या माता त्वमेवैका येग्बोधविधायिनी एकैकमपि यद्वाक्यं हेमकोट्यापि दुर्लभम् / तव सर्वोपदेशानां तेषां स्यामनृणः कथम् स्नातः सोहं सुधाकुण्डे भुक्तो दिव्यफलावलीम् / पीतः कामगवीदुग्धमासीनो नन्दने वने . विलिप्तचन्दनरसैः प्राप्तो भुवनवैभवम् / . . त्वया मातर्हितोक्तीनां पात्रतां गमितोऽस्मि यत् प्रागदृष्टकनीपाणिसंस्पर्शविषविह्वलाः / जननीमवमन्यन्ते ये ते शोच्या महाधियाम् * तद्धितं कुरुते माता स्पष्टसर्वाङ्गलक्षणा / . यद्भः प्रत्ययसन्दोहः कस्य न ध्वनयेन्मनः 201 // 4 // 278 // // 4 // 279 // // 4 / 280 // // 4 / 281 // // 4 // 282 // // 4 // 283 //