________________ - || 4|144 // // 4 // 145 // // 4 // 146 // // 4 // 147 // . // 4 // 148 // // 4 // 149 // सोऽपि तं बालमुत्सङ्गसङ्गिनं जनयन्नथ / . अक्षुण्णमीक्षिताशेषलक्षणः प्रोचिवानिति सुभगे तदहं वच्मि मदुक्तं यदि मन्यसे / करणं हीष्टसिद्धीनामाप्तवागनतिक्रमः मम तत्त्वरुचिर्नाम कन्या वर्ष्या विचक्षणैः / सन्मार्गमार्गणाभिख्यगृहिणीकुक्षिसम्भवा तां चेत्परिणयत्येष पुत्रस्ते प्राप्तयौवनाम् / तदा वदाम्यदः प्रश्नसारं सारङ्गलोचने ' अयं सकलसद्वृत्त एषाप्याजन्मभासुरा / . युक्तोयमनयोर्योगः शशिपूर्णिमयोरिव तत्तस्य वचनं श्रुत्वा दृष्ट्वा कन्यां च तादृशीम् / उन्मीलत्पुलकाङ्गी सा वाचमादत्त निर्वृतिः अनुभूतपराभूतिव्रणसंरोहिणी तव / वाग् जयत्यङ्गभूपाणिग्रहचिन्ताम्बुधेस्तरीः अहा भाग्यमहो भाग्यं यन्मम स्थानसंशये। . साक्षालक्ष्मीरिवाकस्माद्वधूरियमुपस्थिता वचस्तवावमन्येऽहं श्रेयस्कामेति दुर्वचम् / को नाम जीविताकाङ्क्षी लब्धां नाद्रियते सुधाम् सिद्धोऽभ्यधत्त यद्येवं तत्किं विज्ञे ! विलम्ब्यते / मुहूर्तोऽपृष्ट एवायं यत्राभून्नौ समागमः ततः स्वमानसोल्लासोचितारब्धमहोत्सवः / सुतां तत्त्वरुचि सद्यो विवेकेन व्यवाहयत् योग्यस्थाननिवेशेन दुहितुर्जातसंमदः / जगत्सु वत्सलः प्रोचे निवृत्ति सिद्धपुरुषः 190 // 4 / 150 // // 4 // 151 // // 4152 // // 4 / 153 // // 4 // 154 // // 4 // 155 //