________________ // 4 // 48 // // 4 // 49 // // 450 // // 4 // 51 // // 4/52 // // 4/53 // मन्त्रपूतपयः सेकशीतलीभूतभूतलम् / . संपाद्य पाद्यमानीयमानदेशान्तरविंगम् अन्तः प्रतिष्ठिताध्वर्यस्तम्भसंयमितस्तभम् / यथार्हश्रुतिपाठाय साभिप्रायद्विजव्रजम् माषाज्यमुख्यहोतव्यद्रव्यभाजनराजितम् / उल्लण्ठबटुभिर्बाद प्रार्थितालभनक्षणम् वषट्कारमहामन्त्रोच्चास्कोलाहलाकुलम् / नित्यसन्धुक्षितत्रेताधूमस्पर्शोल्लसज्जनम् / तं प्रविश्याभितश्चक्षुः क्षिपन्ती द्वेषिशङ्कया। अभ्युक्ष्यमाणानालब्धुं द्विजैश्छागान् ददर्श सा कथं क्रयन्ति निर्मन्तून् जन्तूनेते समन्तुवत् / मात्स्यो न्यायः प्रवृत्तोऽत्र हा हा जगदराजकम् यदि वैदिकमन्त्राणां शक्तिरुघुष्यते द्विजैः / तद्व्यापारं विना हन्तुर्विमुञ्चन्तामसूनजाः यदि वैदिकमन्त्राणां शक्तिः प्रमाण्यमश्नुते / . तत्तया मार्यमाणानामजानां मास्तु वेदना यदि वैदिकमन्त्राणां शक्तिरस्त्यतिशायिनी / तत्किं देवा न तर्प्यन्ते व्याप्रैः शान्तीकृतैर्हतैः छागानारटतः क्लीबदृशो व्यापाद्य निर्दयम् / धर्मं वन्दतो यज्वानः सौनिकानतिशेरते वेदमन्त्रैर्हता यज्ञे यदि स्वयन्ति जन्तवः / इष्टैरिष्टद्युभिः पित्रादिभिस्तत्क्रियतां क्रतुः तन्मन्त्रैः परिणीतानां वैधव्यं वीक्ष्य योषिताम् / कथं नाम कृती वेद वेदस्याव्यभिचारिताम् // 4/54 // // 4/55 // // 456 // // 4/57 // // 4/58 // ||459 // 182