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________________ // 4 // 12 // // 4 // 13 // // 4 / 14 // // 4 // 15 // // 4 / 16 // // 4 // 17 // वश्या सच्चरितत्यागे प्रत्यवायविमर्शना / परचक्रकृतक्लेशशमनी पद्रदेवता उल्लसद्रजसः पृथ्वो रथ्या भूरिभवभ्रमाः / यत्र सर्वात्मना मोहसैन्यसञ्चरणोचिताः संवेशनासनाशीतिर्या चतुर्भिः समर्गला / एतस्यां विपणिश्रेणेः सा विश्राणयति श्रियम् . वसन्ति सततं येषु व्यासवत्सुप्रमोदिनः / प्राणिनस्ते परीणामा वामा यत्र महागृहाः ये तामध्यासते लोकास्ते सर्वेप्युन्मदिष्णवः / सन्निपातादिवापानादिव भूतग्रहादिव लाभे स्वल्पेपि संतुष्टास्ते गायन्ति हसन्ति च / . नाशेत्यल्पेपि ते दूना आकृन्दन्ति रुदन्ति च केप्युत्कूर्दन्ति निर्दन्ति विवदन्ते वदन्ति च / . परे स्तुवन्ति निन्दन्ति याचन्तै वाचयन्ति वा / केपि कुप्यन्ति गर्वन्ति पूत्कुर्वन्ति तथापरे / एवं जनरवस्तत्र कदाचिन्नोपशाम्यति तस्यां कुवासनावासे मूर्खसंगतपर्षदि। .. अविस्रंसिमतिभ्रंशसिंहासननिषद्वरः कुसंस्कारधृतोदारासंयमातपवारणः / / रत्यरत्याख्यवारस्त्रीप्रेर्यचापलचामरः पाखण्डिभिः प्रतीहारैलॊक्यमानमहाजनः / प्राणिनः प्रीणयन् भक्तान् स्निग्धगम्भीरया दृशा नानासंज्ञानटीक्लृप्तनृत्यविन्यस्तलोचनः / गीयमानगुणग्रामः कामिकश्रुतगायनैः 109 // 4 / 18 // // 4 // 19 // // 4 // 20 // // 4 // 21 // // 4 // 22 // // 4 // 23 //
SR No.004459
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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