________________ . // 4 // 1 // // 4 // 2 // // 4 // 3 // // 4 // 4 // // 45 // // चतुर्थोऽधिकारः // मोहोथ. स्वगतं दध्यौ पुराणास्ते पुरीह या / अविद्या नाम तां सज्जीकृत्य स्थातुं ममौचिती शम्भोमौलिरपांराशिभश्चेति पदत्रयम् / चन्द्रो विलसति स्वैरं राज्ञां रीतिरियं यतः धात्रीधनोपि चेन्नानास्थानसंसूत्रणालसः / सोऽतिशेते कथं शेषलोकमेकगृहाग्रहम् / इति निश्चित्य नीरन्ध्रनिवासां निर्ममे नवाम् / नगरी नामतोऽविद्यां नृपतिर्नृपनीतिवित् परिक्षिप्य स्थितोऽज्ञानप्राकारो यां समन्ततः / प्रावादुकमतानेककपिशीर्षोपशोभितः , प्रविशन्निःसरल्लोकशतसंमर्दसाक्षिणी / प्रतोलीतुलिता यत्र दृष्टा गतिचतुष्टयी तृष्णा निष्णातबुद्धीनामनादेयरसोच्चया / प्रयाति खातिका यत्र सदसद्वस्तुवास्तुताम् आरामा रमणीभोगाः शीतच्छायामनोरमाः / यत्र क्रीडाद्रयोऽशीलस्त्रीविलासाविसंकटाः अभ्यस्यन्ति धनुर्वेदं स्मराद्या मोहसूनवः / यत्र तत्तत्र हन्नेत्रजीवनं यौवनं वनम् हिंसाग्रन्थाश्च कासारा द्विजपुञ्जपरिच्छदाः / हठवादमहापालिवारिताशेषविप्लवाः क्रीडावाप्यः सुसंस्थाना यत्र स्त्रीतनुयष्टयः / - स्तनकोकवलीवीचिवाणिपादाब्जशोभिताः // 46 // // 47 // . // 4 // 8 // // 4 // 9 // // 4 / 10 // . // 4 / 11 // . 178