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________________ // 3173 // // 3 / 174 // // 32175 // // 3 / 176 // // 33177 // // 3 / 178 // सावष्टम्भेत्र पूर्यन्ते नर्मकौतुककेलयः / मन्त्र्यपीति नृपें वैरं वहन्मायामुपाचरत् वात्याविष्ट इवाचिष्मान् पीतमद्य इव द्विपः / व्याधवश्य इव श्येनः सम्पदा इय पन्नगः कुपथ्याप्त इव व्याधिर्विषलिप्त इवाशुगः / मिलितो माययात्यन्तममात्योऽजनि दुःसहः न ग्लायति स्थले गच्छन मज्जति जले व्रजन् / न श्वसित्यद्रिमारोहन्न ज्वलत्यनले भ्रमन् क्षणादलक्षसञ्चारश्चरन् विश्वं चराचरम् / जातु नोद्विज्यते सिद्धविद्यवत्स दिवानिशम् न रज्जुपाशहिञ्जीरैरपि तस्य नियन्त्रणा / पुरतस्तरसत्वस्य न बली स बलीमुखः रामा धामाभिरामाश्चेढौक्यन्ते धनराशयः। . तैरप्यद्भिरिवौर्वाग्नेस्तृष्णा तस्य न शाम्यति न स मन्त्रो न तन्मूलं न मणिर्न च कार्मणम् / येन प्रसत्तिरानेतुं शक्या तस्य विकारिणः येन केनाप्युपायेन वशीचक्रे विशांपतिः / पुनर्यत्तच्छलं प्राप्य प्रेतवत्प्रचुकोप सः . यतो लब्धाधिकारोऽथ राज्ञस्तस्यैव सोऽदुहत् / काष्ठेन दीपितः काष्ठस्यैव कष्टकरोऽनल: मन्त्रिणा माययामन्त्र्य पापपाशैर्महत्तमैः / सविशेषं नृपोऽबन्धि निबद्धोऽपि तया पुरा ताभ्यां नीतः प्रसारिभ्यां मलिनाभ्यां महस्व्यपि / सोऽकिञ्चित्करतां धूमधूमरीभ्यामिवार्यमा . 171 // 33179 // // 3 // 180 // // 3181 // // 3 // 182 // // 3 // 183 // // 3 // 184 //
SR No.004459
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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