________________ // 2 / 28 // // 2 / 29 // // 2 // 30 // // 2 // 31 // // 2 / 32 // // 2 // 33 // ज्ञानत्रयं स तद्भव्यं न त्यक्ता निरयन्नपि / अमेध्यादप्युपादेयं हेमेतीव स्मरन्नयम् तदास्यामवसर्पिण्यां गतायामिह भारते / तदनन्तरजोत्सर्पिण्याश्च मुख्ये गतेऽरके द्वैतीयीकेऽरके लग्ने भस्मीभूते भुवस्तले / मेघाः प्रादुर्भविष्यन्ति स्वयं कालानुभावतः प्रबलानलकीलाभिः फुल्लकंशुकतां गता / पुष्करावर्तवृष्ट्या प्राक् सर्वा निर्वास्यति क्षितिः क्षीरमेघक्षरत्क्षीरपूरसिक्ताय भूरियम् / योक्ष्यते निजवर्णेन तनुरिव तपस्विनः काले घृतघनस्तत्र स्नेहं संक्रमयिष्यति / . सलिलैमञ्जुलैर्वाक्यैर्नवोढायामिव प्रियः वसुधाऽसौ सुधाम्भादेवरधाराकराञ्चिता। . अथ नानाङ्कुरव्याजाद्भर्विता रोमहर्षिणी . ततो रसघनो नानारसान्निःशेषवस्तुषु / गोभिः स्वाभिः कविः काव्येष्विव संयोजिष्यति भावाः कालानुभावेन शैलवल्लिवनादयः / स्वयमेवोद्घटिष्यन्ते निशायामिव तारकाः तदा कुलकराः सप्त भवितारोऽत्र भारते / परार्थप्रगुणो न्यायनिपुणा विलसद्गुणाः मित्रप्रभः सुभूमश्च सुप्रभश्च स्वयंप्रभः / * दत्तः सूक्ष्मः सुबन्धुश्च तेषां नामान्यनुक्रमम् द्वितीयेऽथारके क्षीणे तृतीये च समागते / वैताढ्यभूभृदासन्ने शतद्वाराभिधे पुरे // 2 // 34 // // 2 // 35 // // 2 // 36 // // 2 // 37 // // 238 // // 2 // 39 // 14