________________ // 24 // // 25 // // 2 // 6 // // 27 // // 28 // // 29 // विवेकेन यथा राज्यं लेभे सर्वज्ञसेवया / मोहस्यादेशतः कामस्त्रिलोकी जितवान् यथा ततस्तेन विवेकन यथार्हन्नभ्युपद्यत / तदध्यक्षं. निजां वीरचर्यां सोऽदर्शयद्यथा पाणौकृत्य दृढप्रेमां कुमारी संयमश्रियम् / यथा जातबलोन्मेषो मोहमेषोऽभ्यषेणयत् यथा मोहतमो हत्वा समरे भानुमानिव / मनोमोहक्षयक्षामं विवेकः प्रत्यबोधयत् हुते हुताशे मनसा स्वात्मन्युत्साह्य चेतना / यथा जगन्नायकतां निनाय स्वपत्तिं पुनः तथाहमखिलं वक्ष्ये वृद्धवाक्यानुसारतः / बालोऽप्यभ्येति कान्तारं गुरुहस्तावलम्बनात् पद्मनाभार्हतः शिष्यो भावी धर्मरुचिर्मुनिः / . तद्भाषितदिशा ज्ञेयं स्वरूपं सकलात्मनाम् / जम्बूरित्यस्त्ययं द्वीपो यस्य सच्चक्रशालिनः / परिधिर्जगती तुम्बं सुमेरुररका दिशः तस्य दक्षिणदिग्भागे क्षेत्रं जयति भारतम् / रत्नैघलाभलोभेनेवोदधेः सविधे स्थितम् ... तत्रास्या अवसर्पिण्या व्यतिक्रान्तेऽरकत्रये। तुर्यारकावसाने श्रीवर्धमानो जिनोजनि सप्तहस्तोच्छ्यः स्वर्णरुग् यः केशरिणाङ्कितः / आघाटस्तम्भवद्भेजे तुर्यपञ्चमकारयोः तत्पादपद्मनिश्छद्मसेवाभृङ्गोंऽभवन्नृपः / उल्लसिनागरश्रेणिः श्रेणिको मगधेश्वरः // 2 // 10 // // 2 // 11 // // 2 / 12 // // 2 // 13 // // 2 // 14 // // 2 // 15 // 14.