________________ // 1 / 45 // // 1 / 46 // // 1 / 47 // // 1 / 48 // योऽन्तर्मुहूर्ततः सिध्यत्ययमासन्नसिद्धिकः / आसन्नदूरयोर्मध्ये सिध्यन्मध्यमसिद्धिकः : अत्र मध्यमसिद्ध्यर्हभव्यात्मा कोपि वक्ष्यते / इह मोहविवेकादिष्वेकत्वं जात्यपेक्षया अत्रात्मचेतनादीनां यद्दाम्पत्यादिशब्दनम् / तत्सर्वं कल्पनामूलं सापि श्रेयस्करी क्वचित् मीनमैनिकयोः पाण्डुपत्रपल्लवयोरपि / या मिथः संकथा सूत्रे वद्धा सा किं न बोधये नायकत्वं कषायाणां कर्मणां रिपुसैन्यताम् / आदिशन्नागमोऽप्यस्य प्रबन्धस्यैति बीजताम् सारोपा लक्षणा क्वापि क्वापि साध्यावसानिका। धौरेयतां प्रपद्येते ग्रन्थस्यास्य समर्थने / आत्मज्ञानजुषां ज्वराद्यपगमो दूरे जराराक्षसी, प्रत्यासीदति लब्धिसिद्धिनिवहो ज्ञानं समुन्मीलति / आनन्दोऽनुभवेऽपि वागविषयः स्यात्पुण्यपापक्षयो, मुक्तिर्मुष्टिगतेव केवलमिदं लब्धुं यतध्वं ततः // 1 // 49 // // 1 / 50 // // 151 // // 21 // द्वितीयोऽधिकारः आत्मा निश्चयतो येन स्वरूपेण प्रकीर्तितः / यथा सचेतनोप्येष मायया विवशीकृतः यथाऽतिदूनोदास्ते स्म मायासक्तेऽत्र सन्मतिः / यथा स जनयामास मायायां मोहमङ्गजम् यथा मायामनोवश्यो नानादुःखान्यसोढ सः / .. यथाविवेकमुत्पाद्य मनस्तं निरवासयत् __ // 22 // // 2 // 3 // 146