________________ // 498 // // 499 // // 500 // // 501 // तम्हा सकम्म-विवरे, कज्जं साहंति पाणिणो सव्वे / तो तह जइज्ज सम्मं, जह कम्मं खिज्जइ असेसं कम्मक्खए उवाओ, सुआणुसारेण पगरणे इत्थ। लेसेण मए भणिओ, अणुट्ठिअव्वो सुबुद्धीहिं पायं धम्मत्थीणं, मज्झत्थाणं सुनिउण-दिट्ठीणं / परिणमइ पगरणमिणं, न संकिलिट्ठाण जंतूणं .. हेम-मणि-चंद-दप्पण-सूर-रिसि-पढमवन-नामेहि / सिरि अभयसूरिसीसेहि, विरईयं पगरणं इपमो उवएसमाल-नामं, पूरिअ-कामं सया पढंताणं. / कल्लाण-रिद्धि-संसिद्धि-कारणं सुद्ध-हिययाणं इत्थं वीसहिगारा, जीवदयाईहिं विविह-अत्थेहिं / गाहाणं पंचसया, पणुत्तरा हुंति संखाए / . उवएसमाल-करणे, जं पुन्नं अज्जियं मए तेण / जीवाणं हुज्ज सया, जिणोवएसंमि पडिवत्ती जाव जिणसासण-मिणं, जावइ धम्मो जयम्मि विष्फुरइ / ताव पढिज्जउ एसा, भव्वेहि सया सुहत्थीहिं // 502 // // 503 // // 504 // // 505 // मलधारिश्रीहेमचन्द्रसूरिकृता ॥भवभावना // णमिऊण णमिरसुरवरमणिमउडफुरंतकिरणकब्बुरिअं / बहुपुत्रंकुरनियरंकियं व सिरिवीरपयकमलं सिद्धंतसिंधुसंगयसुजुत्ति-सुत्तीण संगहेऊणं / .. मुत्ताहलमालं पिव रएमि भवभावणं विमलं . // 1 // // 2 // 88