________________ सारेऊण य कवयं, निव्वाघाएण चिंधकरणं च / वाघाए जायणया, भत्तपरिन्ना य कायव्वा // 486 // अपरक्कमो बलहीणो, निव्वाघाएण कुणइ गच्छम्मि। वाघाओ रोग-विसाइएहि, तह विज्जुमाईहिं // 487 // इक्कं पंडियमरणं, छिंदइ जाई सयाई बहुआई। इक्कं पि बालमरणं, कुणइ अणंताई दुक्खाई // 488 // धीरेण वि मरियव्वं, काउरिसेण वि अवस्स मरियव्वं / ता निच्छियम्मि मरणे, वरं खु धीरत्तणे मरिउं // 489 // पाउवगमण-इंगिणि, भत्तपरिनाइ विबुहमरणेण / जंति महाकप्पेसु, अहवा पावंति सिद्धिसुहं // 490 // सुरगण सुहं समग्गं, सव्वद्धा पिंडियं जइ हविज्जा। न वि पावइ मुत्ति-सुहं, णंताहिं वि वग्गवाहिं // 491 // दुक्खं जरा विओगो, दारिदं रोय-सोय-रागाई। तं च न सिद्धाण तओ; ते च्चिय सुहिणो न रागंधा // 492 / / निच्छिन-सव्व-दुक्खा, जाइ-जरा-मरण-बंधण-विमुक्का / अव्वाबाहं सुक्खं , अणुहंती सासयं सिद्धा // 493 // संते वि सिद्धिसुक्खे, पुव्वुत्ते दंसिअम्मि वि उवाए। लद्धे वि माणुसत्ते, पत्ते वि जिणिंद-वर-धम्मे // 494 // जं अज्ज वि जीवाणं, विसएसु दुहासवेसु पडिबंधो। तं नज्जइ गरुयाण वि, अलंघणिज्जो महामोहो // 495 // नाऊण सुअबलेणं, करयलमुत्ताहलं व भुवणयलं / के वि निवडंति तह विहु, पिच्छसु कम्माण बलिअत्तं // 496 // इक्कं पि पयं सोउं, अन्ने सिझंति समर-निवइ व्व। . संजाय-कम्म-विवरा, जीवाण गई अहो विसमा // 497 //