________________ जललवचलम्मि विहवे, विज्जुलयाचंचलम्मि मणुयत्ते / धम्मम्मि जो विसीयइ, सो कापुरिसो न सप्पुरिसो . // 474 // वरविसयसुहं सोहग्ग-संपयं वररूवजसकित्तिं / जइ महसि जीव निच्चं, ता धम्मे आयरं कुणसु // 475 // धम्मेण विणा परिचिंतियाइं जइ हुंति कह वि एमेव। ता तिहुयणम्मि सयले, न हुज्ज इह दुक्खिओ कोइ // 476. / / तुल्ले वि माणुसत्ते, के वि सुही दुक्खिया य जं अन्ने / तं निउणं परिचिंतसु, धम्माधम्मफलं चेव , - // 477 // ता जइ मणोरहाण वि, अगोयरं उत्तमं फलं महसि / ता धणमित्तु व्व दढं, धम्मे च्चिय आयरं कुणसु। // 478 // इय सव्वगुणविसुद्धं, दीहं परिपालिऊण परियायं / / तत्तो कुणंति धीरा, अंते आराहणं जम्हा , // 479 // सुचिरं पि तवं तवियं, चिन्नं चरणं सुयं च बहुपढियं / अंते विराहइत्ता, अणंतसंसारिणो भणिया // 480 // काले सुपत्तदाणं, चरणे सुगुरूण बोहिलाभं च। . अंते समाहिमरणं, अभव्वजीवा न पावंति . // 481 // सपरक्कमेयरं पुण, मरणं दुविहं जिणेहिं निद्दिटुं / इक्विकं पि य दुविहं, निव्वाघायं च वाघायं // 482 // सपरक्कमं तु तहियं, निव्वाघायं तहेव वाघायं / जीयकप्पंमि भणियं, इमेहिं दारेहिं नायव्वं // 483 // गणनिसरणा परगणे, सिति संलेहे अगीय-संविग्गे / एगाऽभोगाणमन्ने, अणपुच्छ परिच्छया-लोए // 484 // ठाण-वसही-पसत्थे, निज्जवगा दव्वदाइणा चरिमे। हाणि परितंत निज्जर, संथारुव्वत्तणाईणि . // 485 // 8%