________________ // 450 // // 451 // // 452 / / // 453 // // 454 // // 455 // इयरित्थीण वि संगो, अग्गी सत्थं विसं विसेसेइ। जा संजईहिं संगो, सो पुण अइदारुणो भणिओ चेइय-दव्व-विणासे, रिसिघाए पवयणस्स उड्डाहे / संजइ-चउत्थ-भंगे, मूलग्गी बोहिलाभस्स चेइय-दव्वं साहारणं च, जो मुसइ जाणमाणो वि। धम्मं पि सो न याणइ, अहवा बद्धाउंओ नरए जमुवेहंतो पावइ, साहूवि भवं दुहं च सोऊण / संकासमाइयाणं, को चेइयदव्वमवहरइ / जो लिंगिणि निसेवइ, लुद्धो निद्धंधसो महापावो। सव्व जिणाण झेओ, संघो आसाइओ तेण पावाणं पावयरो, दिद्विब्भासे वि सो न कायव्वो / जो जिणमुद्दे समणि, नमिउं तं चेव धंसेई संसारमणवयग्गं, जाइ-जरा-मरण-वेअणा-पवरं / पाव-मल-पडल-छन्ना, भमंति मुद्दा-धरिसणेणं . अन्ने पि अणाययणं, परं तित्थयमाईयं विवज्जिज्जा। आययणं सेविज्जसु, वुड्डिकरं नाणमाईणं भावुग-दव्वं जीवो, संसग्गीए गुणं च दोसं च। पावइ इत्थाहरणं, सोमा तह दियवरो चेव सुट्ठ वि गुणे धरतो, पावइ लहुअत्तणं अकित्तिं च / परदोस-कहा-निरओ, उक्करिसपरो अ सगुणेसु आयरइ जइ अकज्जं, अन्नो किं तुज्झ तत्थ चिंताए। अप्पाणं चिअ चिंतसु, अज्जवि वसगं भवदुहाणं परदोसं जपंतो, न लहइ अत्थं जसं न पावेइ। सुअणं पि कुणइ सत्तुं, बंधइ कम्मं महाघोरं // 456 // // 457 // // 458 // // 459 // // 460 // // 461 // 84