________________ इच्छिज्ज न इच्छिज्ज व, तह वि य पयओ निमंतए साहू। परिणामविसुद्धीए, निज्जरा होइ अगहिए वि // 426 // वेयावच्चे अब्भुज्जएण तो वायणाइ पंचविहो / विच्चम्मि य सज्झाओ, कायव्वो परम-पय-हेऊ // 427 // इत्तो सव्वन्नृत्तं, तित्थयरत्तं च जायइ कमेण। इय परमं मुक्खंगं, सज्झाओ तेण विन्नेओ // 428 // तं नत्थि जं न पासइ, सज्झाय-विऊ पयत्थ-परमत्थं / गच्छइ य सुगइमूलं, खणे खणे परमसंवेगं' // 429 // कम्ममसंखिज्जभवं, खवेइ अणुसमयमेव आउत्तो / अन्नयरम्मि वि जोगे, सज्झायंति विसेसेण // 430 // उक्कोसो सज्झाओ, चउदसपुव्वीण बारसंगाई। तत्तो परिहाणीए, जाव तयत्थो नमुक्कारो ' // 431 // जलणाइ भए सेसं, मुत्तुं इक्कं पि जह महारयणं / घिप्पइ संगामे वा, अमोह-सत्थं जह तहेह // 432 // मुत्तुं पि बारसंगं, स एव मरणम्मि कीरए जम्हा। अरहंत-नमुक्कारो, तम्हा सो बारसंगत्थो // 433 // सव्वं पि बारसंगं, परिणाम-विसुद्धि-हेउ-मित्तागं / तक्कारण-मित्ताओ, किह न तयत्थो नमुक्कारो // 434 // न हु तम्मि देसकाले, सक्का बारसविहो सुअक्खंधो / सव्वो अणुचिंतेडे, धंतं पि समत्थचित्तेणं // 435 // नामाइ मंगलाणं, पढमं चिय मंगलं नमुक्कारो / अवणेइ वाहि-तक्कर-जलणाइ भयाई सव्वाई // 436 // हरइ दुहं कुणइ सुहं, जणइ जसं सोसए भवसमुदं / इहलोय पारलोइअ, सुहाण मूलं नमुक्कारो // 437 //