________________ माय-पिय-बंधु-भज्जा-सुएसु पिम्मं जणंमि सविसेसं / चुलणी कहाइं तं पुण, कणगरह-विचिट्ठिएणं च // 390 // तह भरहनिवइं भज्जा, असोग चंदाइ चरिअ सवणेण / अड्र विरसं चिय नज्जइ, विचिट्ठियं मूढ हियआण // 391 // हुति मुहु च्चिय महुरा, विसया किंपाग-भूरुह-फलं व। परिणामे पुण तिच्चिय, नारयजलर्णिधणं मुणसु // 392 // विसयाविक्खो निवडइ, निरविक्खो तरइ दुत्तरभवोहं / जिण-वीर-विणिद्दिट्टो, दिटुंतो बंधु-जुअलेण // 393 // आहार-गंध-मल्ला-इएहिं सुयलंकिओ सुपुट्ठो वि / देहो न सूई न थिरो, विहडइ सहसा कुमित्तु व्व // 394 // तम्हा दारिद्द-जरा-परपरिभव-रोअ-सोअ-तविआणं / मणुआण वि नस्थि सुहं, दविण पिवासाइ नडियाणं // 395 // सव्वं सुराण विभवो, अणुत्तरो रयण-रइय-भवणेसु / दिव्वाभरण-विलेवण-वर-कामिणि-नाडय-रयाण // 396 // किंतु मय-माण-मच्छर-विसाय-ईसा-नलेण संतत्ता। ते वि चविऊण तत्तो, भमंति केई भवमणंतं / // 397 // तम्हा सुहं सुराण वि, न कि पि अहवा इमाइ सुक्खाई। अवसाण दारुणाई, अणंतसो पत्त-पुव्वाइं // 398 // तं नस्थि किं पि ठाणं, लोए वालग्ग-कोडिमित्तं पि। जत्थ न जीवा बहुसो, सुहदुक्खपरंपरं पत्ता // 399 // सव्वाओ रिद्धीओ, पत्ता सव्वे वि सयणसंबंधा। संसारे तो विरमसु, तत्तो जइ मुणसि अप्पाणं // 400 // इय भव-विरत्त-चित्तो वि, सुद्ध-चरणाइ-गुण-जुओ निच्चं / विणए रमिज्ज सव्वे, जेण गुणा निम्मला हुंति // 401 //