________________ सव्वं पि य पच्छित्तं, नवमे पुव्वम्मि तइअ वत्थुम्मि / तत्तु च्चिय निज्जूढा, कप्पपकप्पोय ववहारो // 378 // ते वि अ धरति अज्ज वि, तेसु धरतेसु कह तुमं भणसि / वुच्छिन्नं पच्छित्तं, तद्दायारो य जा तित्थं // 379 // कयपावो वि मणुस्सो, आलोइय निंदिय गुरुसगासे / होइ अइरेग लहुओ, ओहरिय भरु व्व भारवहो // 380 // निद्वविय-पावपंका, सम्मं आलोइयं गुरुसगासे। पत्ता अणंतसत्ता, सासयसुक्खं अणाबाहं // 381 // एवं विसुद्धचरणो, सम्मं विरमिज्ज भवसरूवाओ। नरगाइ-भेय-भिन्ने, नत्थि सुहं जेण संसारे // 382 // दीहं ससंति कलुणं, भणंति विरसं रसंति दुक्खत्ता / नेरइआ अ परुप्पर-सुरखित्त-समुत्थ-वियणाहिं // 383 // जं नारयाण दुक्खं, उक्कत्तण-दहण-छिंदणाईयं / तं वरिससहस्सेहि वि, न भणिज्ज सहस्स वयणो वि // 384 // सी-उन्ह-खुप्पिवासा, दहणं-कण-वाह-दोह-दुक्खेहिं / दूमिजंति तिरिक्खा, जह तं लोएवी पच्चक्खं लच्छीपेमं विसया, देहो मणुअत्तणेवि लोयस्स। एयाइं वल्लहाई, ताणं पुण एस परिणामो . // 386 // न भवइ पत्थंताण वि, जायइ कइयावि कह वि एमेव / विहडइ पिच्छंताण वि, खणेण लच्छी कुमहिल व्व // 387 // जह सलिला वड्ढंती, कूलं पाडेइ कलुसए अप्पं / इअ विहवे वड्ढते, पायं पुरिसो वि दट्ठव्वो // 388 // होऊण वि कह वि निरंतराइं दूरंतराइं जायंति। उम्मोइय-रसणंतो-वमाइं पिम्माई लोयस्स // 389 // 78