________________ // 366 // // 367 // // 368 // // 369 // // 370 // // 371 // जाइकुलविणयउवसम-इंदियजयनाणदंसणसमग्गा / अणणुता वि अमाई, चरणजुयालोयगा भणिया मूलुत्तरगुणविसयं, निसेवियं जमिह रागदोसेहिं / दप्पेण पमाएण व, विहिणा लोइज्जं तं सव्वं चाउम्मासिय वरिसय, दायव्वा-लोयणा चउछकण्णा / संविग्गभाविएणं, सव्वं विहिणा कहेअव्वं जह बालो जंपतो, कज्जमकज्जं च उज्जु भणइ / तं तह आलोइज्जा, मायामयविप्पमुक्को अ छत्तीसगुणसमन्ना-गएण तेण वि अवस्स कायव्वा / परसक्खिया विसोही, सुट्ट वि ववहारकुसलेण जह सुकुसलो वि विज्जो, अन्नस्स कहेइ अप्पणो वाहिं / एवं जाणंतस्स वि, सल्लुद्धरणं गुरुसगासे अप्पं पि भावसल्लं, अणुद्धरियं रायवणिअतणएहिं।। जायं कडुयविवागं, किं पुण बहुयाइं पावाइं लज्जाइ गारवेण य, बहुस्सुअमएण वा वि दुच्चरियं / जे न कहंति गुरूणं, न हु ते आराहगा हुंति न वि तं सत्थं व विसं, व दुप्पउत्तु व्व कुणइ वेयालो। जं कुणइ भावसलं, अणुद्धियं सव्वदुहमूलं आकंपइत्ता अणुमाणइत्ता, जं दिटुं बापरं च सुहमं वा / छन्नं सद्दाउलयं, बहुजण अव्वत्त तस्सेवी एअ-दोस-विमुक्कं, पइ-समय-वड्डमाण-संवेगो।। आलोइज्ज अकज्ज, न पुणो काहंति निच्छयओ जो भणइ नत्थि इण्डिं, पंच्छित्तं तस्स दायगा वा वि / सो कुव्वइ संसार, जम्हा सुत्ते विणिद्दिटुं // 372 // // 373 // // 374 // // 375 // // 376 // // 377 //