________________ // 354 // // 355 // // 356 // // 357 // // 358 // // 359 // तो सेविज्ज गुरुं चिय, मुक्खत्थी मुक्खकारणं पढमं / आलोइज्ज सुसम्मं, पमायखलियं च तस्संते कस्सालोयण आलोअओ य आलोइयव्वयं चेव / आलोयणविहिमुवरिं, तद्दोस गुणे अ वुच्छामि आयरव माहारव, ववहारव वीलए पकुव्वी अ। अपरिस्सावी निज्जव, अवायदंसी गुरू भणिओ आगम सुअ आणा धारणा-य जीयं च होइ ववहारो / केवल मणो हि चऊदस, दस नव पुव्वाइ पढमत्था कहेहि सव्वं जो वुत्तो, जाणमाणो वि गूहई। . न तस्स दिति पच्छित्तं, बिंति अन्नत्थ सोहया न संभरइ जो दोसे, सब्भावा न य मायओ। पच्चक्खी साहए तेउ, माईणो उ न साहई ' आयारपकप्पाई, सेसं सव्वं सुयं विणिद्दिटुं / देसंतरट्ठियाणं, गूढपयालोअणा आणा गीयत्थेणं दिन्नं, सुद्धि अवधारिऊण तह चेव। . दितस्स धारणा सा, उद्धिअ-पय-धरण-रूवा वा दव्वाइ चिंतिऊणं, संघयणाईण हाणिमासज्जा। पायच्छित्तं जीयं, रूढं वा जं जहिं गच्छे अग्गीओ न वियाणई, सोहि चरणस्स देइ ऊणहियं / तो अप्पाणं आलोयगं च पाडेइ संसारे तम्हा उक्कोसेणं, खित्तम्मि उ सत्तजोयणसयाई। काले बारसवरिसा, गीअत्थ गवसणं कुज्जा आलोयणा परिणओ, सम्मं संपढिओ गुरुसगासे / ' जइ अंतरा वि कालं, करिज्ज आराहओ तह वि // 360 // // 361 // // 362 // // 363 // // 364 // // 365 //