________________ // 342 // // 343 // // 344 // // 345 // // 346 // // 347 // गच्छंतु उवेहंतो, कुव्वइ दीहं भवं विहीए उ। पालंतो पुण सिज्झइ, तइय भवे भगवई सिद्धं गुरुचित्तविऊ दक्खा, उवसंता अमुइणो कुलवहु व्व / विणयरया य कुलीणा, हुंति सुसीसा गुरुजणस्स आगारिंगिय-कुसलं, जइ सेयं वायसं वए पुज्जा। तह वि अ सिं न वि कूडे, विरहम्मि अ कारणं पुच्छे निवपुच्छिएण गुरुणा, भणिओ गंगा कओमुही वहइ / संपइ एवं सीसो, जह तह सव्वत्थ कायव्वं नियगुणगोरवमत्तो, थद्धो विणयं न कुव्वइ गुरूणं / तुच्छो अवन्नवाई, गुरुपडिणीओ न सो सीसो निच्छइ य सारणाई, सारिजंतो अ कुप्पइ स पावो। उवएस पि न अरिहइ, दूरे सीसत्तणं तस्स छंदेण गओ छंदेण आगओ चिट्ठिउ य छंदेण / छंदेण वट्टमाणो, सीसो छंदेण मुत्तव्वो नाणस्स होइ भागी, थिरय रओ दंसणे चरित्ते य / धन्ना आवकहाए, गुरुकुलवासं न मुंचंति पढमं चिय गुरुवयणं, मुम्मुरजलणुव्व दहइ भन्नतं / परिणामे पुण तं चिय, मुणालदल सीयलं होइ तह सेवंति सपुत्रा, गुरु कुलवासं जहा गुरूंणं पि। नित्थारकारणं चिय, पंथगसाहु व्व जायंति सिरिगोअमाइणो गणहरा वि, नीसेस-अइसय-समग्गा / तब्भवसिद्धीआ वि हु, गुरुकुलवासं चिय पवन्ना उज्झिय गुरुकुलवासो, इक्को सेवइ अकज्जमविसंको।' तो कूलवालउ इव, भट्ठवओ भमइ भवगहणे // 348 // // 349 // // 350 // // 351 // // 352 // // 353 // . 75