________________ देस-कुल-जाइ-रूवी, संघयण-धिई-जुओ अणासंसी। अविकत्थणो अमाई, थिर परिवाडी गहिअवक्को. // 330 // जियपरिसो जियनिद्दो, मज्झत्थो देसकालभावन्नू / आसन्नलद्धपइभो, नाणाविहदेसभासन्नू // 331 // पंचविहे आयारे, जुत्तो सुत्तत्थ-तदुभयविहन्नू / / आहरण-हेउ-उवणय-नय-निउणो गाहणा कुसलो / // 332 // ससमयपरसमयविऊ, गंभीरो दित्तिमं सिवो सोमो।। गुणसयकलिओ एसो, पवयणउवएसओ अ गुरू // 333 // अट्टविहा गणिसंपय-आयाराई चउव्विहिक्किक्का। चउहा विणयपवित्ती, छत्तीस गुणा इमे गुरुणो // 334 // कालाइदोसवसओ, इत्तो इक्काइगुणविहीणो वि। होइ गुरू गीयत्थो, उज्जुत्तो सारणाईसु / // 335 // जीहाए वि लिहतो, न भद्दओ जत्थ सारणा नत्थि। दंडेण वि ताडतो, स भद्दओ सारणा जत्थ // 336 // जह सीसाइ निकितइ, कोइ सरणागयाण जंतूणं / तह गच्छमसारंतो, गुरू वि सुत्ते जओ भणियं // 337 // जणणीए अनिसिद्धो, निहओ तिलहारओ पसंगेणं। जणणी वि थणच्छेयं, पत्ता अनिवारयंतीओ // 338 // इय अनिवारयदोसा, सीसा संसारसागरमुर्विति / विणयत्तपसंगा पुण, कुणंति संसारखुच्छेयं // 339 // जहिँ नत्थि सारणा वारणा य पडिचोयणा व गच्छम्मि। . सो अ अगच्छो गच्छो, संजमकामीहिं मुत्तव्वो // 340 // अणभिओगेण तम्हा, अभिओगेण च विणीय इयरें य। .. जच्चियर तुरंगा इव, वारेअव्वा अकज्जेसु . // 341 //