________________ // 318 // // 319 // // 320 // // 321 // // 322 // // 323 // जं पिच्छसि जियलोए, चउगइ-संसार-संभवं दुक्खं / तं जाण कंसायफलं, सुक्खं पुण तज्जयस्स फलं तं वत्थु मुत्तव्वं, जं पइ उप्पज्जए कसायग्गी। तं वत्धुं पित्तव्वं, जत्थोवसमो कसायाणं एसो सो परमत्थो, एयं तत्तं तिलोयसारमिणं / सयलदुहकारणाणं, विणिग्गहो जं कसायाणं माया लोभो रागो, कोहो माणो अ वनिओ दोसो। निज्जिणसु इमे दुन्नि वि, जइ इच्छसि तं पयं परमं ससुरासुरं पि भुवणं, निज्जिऊणं वसीकयं जेहिं / ते राग-दोस-मल्ले, जयंति जे ते जए सुहडा रागो अ तत्थ तिविहो, दिट्ठिसिणेहाणुराय-विसएसु / कुप्पवयणेसु पढमो, बीओ सुअ-बंधु-माईसु विसयपडिबंधरूवो, तइओ दोसेण सह ओदाहरणा / लच्छीहर-सुंदर-अरिह-दत्त-नंदाइणो कमसो सत्तू विसं पिसाओ, वेयालो हुयवहो वि पज्जलिओ। तं न कुणइ जं कुविआ, कुणंति रागाइणो देहे जो रागाईण वसे, वसम्मि सो सयलदुक्खलक्खाणं / जस्स वसे रागाई, तस्स वसे सयलसुक्खाई पुव्वुत्तगुणा सव्वे, दंसणचारित्तसुद्धिमाईया / हुंति गुरुसेवणुच्चिय, गुरुकुलवासं अओ वुच्छं को य गुरू को सीसो, के य गुणा गुरुकुले वसंतस्स / तप्पडिवक्खे दोसा, भणामि लेसेण तत्थ गुरू विहिपडिवनचरित्तो, गीयत्थो वच्छलो सुसीलो य / सेवि य गुरुकुलवासो, अणुअत्तिपरो गुरू भणिओ .. . 1 // 324 // // 325 // // 326 // // 327 // // 328 // // 329 //