________________ को लोभेण न निहओ, कस्स न रमणीहिं भोलियं हिययं / को मच्चुणा न गसिओ, को गिद्धो नेव विसएसु // 306 // पियविरहाओ न दुसहं, दारिदाउ परं दुहं नत्थि। लोभ समो न कसाओ, मरण समा आवइ नत्थि // 307 // थोवा माणकसाई, कोहकसाई तओ विसेसहिआ। मायाकसाइ विसेसहिया, लोभम्मि तओ विसेसहिया // 308 // इअ लोभस्सुवओगो, सुत्ते वि हु दीहकालिओ भणिओ। पच्छा य जं खविज्जइ, एसु च्चिय तेण गरुंअयरो // 309 // कोहाइणो य सव्वे, लोभाउ च्चिय जओ पयट्टंति। ... एसु च्चिय तो पढमं, निग्गहिअव्वो पयत्तेण // 310 // न य विहवेणुवसमिओ, लोभो सुरमणुअचक्कवट्टीहिं।। संतोसु च्चिय तम्हा, लोभविसुच्छायणे मंतो // 311 // जह जह वड्ढइ विहवो, तह तह लोभो वि वड्ढए अहियं / देवा इत्थाहरणं, कविले वा खुड्डओ वा वि . // 312 // सामन्नमणुचरंतस्स, कसाया जस्स उक्कडा हुंति / मन्नामि उच्छुपुष्पं व, निप्फलं तस्स सामन्नं // 313 // जं अज्जियं चरितं, देसूणाए वि पुव्वकोडीए। तं पि कसाइय मित्तो, हारेइ नरो मुहुत्तेण // 314 // जइ उवसंतकसाओ, लहइ अणंतं पुणो वि पडिवायं / न हु भे वीससियव्वं, थोवे वि कसाय सेसम्मि // 315 // पढमाणुदए जीवो, न लहइ भवसिद्धिओ वि सम्मत्तं। . बीआण देसविरई, तइआणुदयम्मि चारित्तं // 316 // सव्वे वि अ अइयारा, संजलणाणं तु उदयओ हुति।। मूलछिज्ज पुण होइ, बारसण्हं कसायाणं // 317 // सामन 72