________________ खंती सुहाण मूलं, मूलं धम्मस्स उत्तमा खंती। हरइ महाविज्जा इव, खंती दुरियाई सयलाई // 294 // कोवम्मि खमाए वि य, चंकारिय खुडओ अ आहरणं / कोवेण दुहं पत्तो, खमाइ नमिओ सुरेहिं पि // 295 // जाइ-कुल-रूव-बल-सुअ-लाभ-तव-सिरिय-अट्ठहा माणो / जाणिय परमत्थेहि, मुक्को संसारभीरूहि // 296 // अन्नयरमओम्मत्तो, पावइ लहुअत्तणं सुगुरूओ वि। विबुहाण सोयणिज्जो, बालाण वि होइ हसणिज्जो // 297 / / जइ नाणाइ मओ वि हु, पडिसिद्धो अट्ठमाणमहणेहिं / तो सेस मयट्ठाणा, परिहरियव्वा पयत्तेण // 298 // दप्पविसपरममंतं, नाणं जो तेण गव्वमुव्वहइ / सलिलाउ तस्स अग्गी, समुट्ठिओ मंद पुन्नस्सं // 299 // धम्मस्स दया मूलं, मूलं खंती वयाण सयलाण / विणओ गुणाण मूलं, दप्पो मूलं विणासस्स // 300 // बहुदोससंकुले गुणलवम्मि, को हुज्ज गविओ इहई। सोऊण विगयदोसं, गुणनिवहं पुव्वपुरिसाण // 301 // सोहइ दोसाभावो, गुण व्व जइ होइ मच्छरुत्तिन्नो। विहवेसु तह गुणेसु अ; इमे इट्ठिओ अहंकारो // 302 // जाइ मएणिक्केण वि, पत्तो डुंबत्तणं दिअवरो वि।। सव्वमएहिं कहं पुण, होहिंति न सव्वगुणहीणा // 303 // जे मुद्धजणं परिवंचयंति, बहु-अलिय-कूड-कवडेहिं / अमरनरसिवसुहाणं, अप्पा वि हु वंचिओ तेहिं // 304 // जइ वणिसुआइ दुक्खं , लद्धं इक्कसि कयाइ मायाए / तो ताण को विवागं, जाणइ जे माइणो निच्चं // 305 //