________________ // 282 // // 283 // // 284 // // 285 // // 286 // | 287 // तेसिं सरूवं भेओ, कालो गइमाइणो य भणियव्वा। पत्तेयं च विवागो, रागद्दोसत्तभावो अ कम्मं कसं भवो वा, कसमाओ सिं जओ कसायाओ। संसारकारणाणं, मूलं कोहाइणो अ ते अ कोहो माणो माया, लोहो चउरो वि हुंति चउ भेया।.. अण अप्पच्चक्खाणा, पच्चक्खाणा य संजलणा बंधति भवमणंतं, तेण अणंताणुबंधिणो भणिया। एवं सेसा वि इमं, तेसिं सरूवं तु विन्नेयं जल-रेणु-पुढवि-पव्वय-राईसरिसो चउब्विहो कोहो / तिणिस लया कट्ठ-ट्ठिय-सेल-थंभोवमो माणो मायावलेहि-गोमुत्ति-मिंढसिंग-घणवंसमूलसमा / / लोहो हलिद्द-खंजण-कद्दम-किमिरागसामाणो पक्ख-चउमासि-वच्छर-जावज्जीवाणुगामिणो भणिया / देव-नर-तिरिय-नारय-गइसाहणंहेयवो नेया . चउसु वि गईसु सव्वे, नवरं देवाणु समहिओ लोहो / नेरइआण वि कोहो, माणो मणुयाण अहिअयरो माया तिरियाणहिया, मेहुण-आहार-मुच्छ-भय-सन्ना / स भवे कमेणहिया मणुस्स-तिरि-अमर-निरयाणं मित्तं पि कुणइ सत्तुं, पच्छइ अहियं हियं पि परिहरइ। कज्जाकज्जं न मुणइ, कोवस्स पसंगओ पुरिसो धम्मत्थकामभोगाण हारणं कारणं दुहसयाणं / मा कुणसु कयभवोहं, कोहं जइ जिणमयं मुणसि इह लोइ च्चिय कोवो, सरीरसंताव-कलह-वेराईं। कुणइ पुणो परलोगे, नरगाइसु दारुणं दुक्खं // 288 // // 289 / / // 290 // . // 291 // // 292 // // 293 //