________________ जं लहइ वीयराओ, सुक्खं तं मुणइ सच्चिय न अन्नो / न हि गत्तासूयरओ, जाणइ सुरलोइयं सुक्खं . // 258 // इय सुहफलयं चरणं, जायई इत्थेव तग्गयमणाणं। परलोय-फलाइं पुण, सुरनरवर-सिद्धि-सुक्खाई // 259 // अव्वत्तेण वि सामाइएण तह एगदिणपवनेणं। संपइराया रिद्धि, पत्तो किं पुण समग्गेण - // 260 // अजिइंदिएहिँ चरणं, कट्ठव घुणेहिं कीरइ असारं / तो चरणत्थीहिँ दढं, जइयव्वं इंदियजयम्मि // 261 // भेओ सामित्तं चिय, संठाण पमाण तहय विसओ य। . इंदियगिद्धाण तहा, होइ विवागो अ भणियव्वो // 262 // पंचेव इंदियाई, लोयपसिद्धाइं सोयमाईणि / दविंदिअ भाविदिअ, भेयविभिन्नं पुणिक्तिकं // 23 // अंतो-बहि-निव्वत्ती, तस्सत्ति-सरूवयं च उवगरणं / दग्विंदियमियरं पुण, लद्धवओगेहिं नायव्वं // 264 // पुढवि-जल-अग्गि-वाया, रुक्खा एगिदिया विणिद्दिट्ठा / किमि -संख-जलूगा-लस-माईवाहाइ य बेइंदि // 265 // कुंथु पिवीलिय पमुया, जूया उद्देहिया य तेइंदी। विच्छु-भमर-पयंगा, मच्छिय-मसगाई चउरिदि // 266 / / मूसग सप्प गिलोइ य, बंभणीया सरड पक्खिणो मच्छा। गो महिस ससय सूयर, हरिण मणुस्सा य पंचिंदी // 267 // कायंवपुप्फगोलय, मसूर अइमुत्तयस्स पुष्पं व / सोयं चक् घाणं, खुरप्पपरिसंठियं रसणं // 268 // नाणागारं फासिंदियं तु, बाहल्लओ य सव्वाइं। . अंगुलमसंखभाग, एमेव पहुत्तओ नवरं . // 269 // 18