________________ // 246 // // 247 // // 248 // // 249 // // 250 // // 251 // जो पुण हिंसाययणेसु वट्टई तस्स नणु परीणामो। दुट्ठो न य तं लिंगं, होइ विसुद्धस्स जोगस्स पडिसेहो अ अणुन्ना, एगंतेणं न वनिया समए / एसा जिणाण आणा, कज्जे सच्चेण होअव्वं दोसा जेण निरुज्झंति, जेण खिज्जंति पुव्वकम्माई। सो सो मुक्खोवाओ, रोगावत्थासु समणं व बहु-वित्थर-मुस्सग्गं, बहुयर-मुववाय-वित्थरं नाउं। जेण न संजमहाणी, तह जयसु निज्जरा जह य सामनेणुस्सग्गो, विसेसिओ जो स होइ उववाओ। ताणं पुण वावारे, एस विही वनिओ सुत्ते उस्सग्गे अववायं, आयरमाणो विराहओ होइ। अववाए पुण पत्ते, उस्सग्ग निसेवओ भईउ किह होही भइअव्वो, संघयणधीइजुओ समत्थोओ। एरिसओ उववाए, उस्सग्ग निसेवओ सुद्धो. इअरो उ विराहेई, असमत्थो जं परीसहे सहिउं / धीइसंघयणेहितो, एगयरेणं वि सो हीणो गंभीरं जिणवयणं, दुविनेअं अनिउणबुद्धीहि / तो मज्झत्थेहिं इमं, विभावणीयं पयत्तेण उस्सग्गववाय-विऊ, गीयत्थो निस्सिओ अं जो तस्स। अनिगृहंतो विरियं, असढो सव्वत्थ चारित्ती रागाइदोसरहिओ, मयण-मयट्ठाण-मच्छर-विमुक्को / जं लहइ सुहं साहू, चिंताविसवेयणारहिओ तं चिंतासयसल्लिय-हियएहिं कसायकामनडिएहिं। . कह उवमिज्जइ लोए, सुरवरपहुचक्कवट्टीहिं 67 // 252 // // 253 // // 254 // // 255 / / // 256 // . // 257 // 8 . .