________________ छज्जीवकायसंजमो, दव्वत्थए सो विरुज्झए कसिणो। तो कसिण संजम विऊ, पुप्फाइयं न इच्छंति // 234 // अकसिण-पवत्तगाणं, विरयाविरयाण एस खलु जुत्तो। संसारपयणुकरणो, दव्वत्थए कूवदिटुंतो // 235 // तो आणाबज्झेसुं, अविसुद्धालंबणेसु न रमिज्जा। नाणाइवुड्ढिजणयं, तं पुण गिझं जिणोणाए // 236 / / काहं अच्छित्तिं अहवा अहीहं, तवोविहाणेण य उज्जमिस्सं / गच्छं च नीई इअ सारइस्सं, सालंबसेवी समुवेइ मुक्खं // 237 / / सालंबणो पडतो, अप्पाणं दुग्गमे वि धारेइ। . इय सालंबणसेवी, धारेइ जई असढभावं // 238 // उस्सग्गेण निसिद्धं, अववायपयम्मि सेवए असढ़ो। अप्पेण बहूं इच्छइ, विसुद्ध-मालंबणो समणो // 239 // पडिसिद्धं पि कुणंतो, आणाए दव्व-खित्त-कालन्नू / सुज्झइ विसुद्धभावो, कालयसूरि व्वं जं भणियं . // 240 // जा जयमाणस्स भवे, विराहणा सुत्तविहि-समग्गस्स / सा होइ निज्जरफला, अब्भत्थ विसोहि जुत्तस्स // 241 // जे जत्तिआ य हेऊ, भवस्स ते चेव तत्तिआ मुक्खे / गणणाईया लोगा, दुण्ह वि पुन्ना भवे तुल्ला // 242 // इरियावहियाईया, जे चेव हवंति कम्मबंधाय / अजयाणं ते चेव ओ, जयाण निव्वाणगमणाय // 243 // एगंतेण निसेहो, जोगेसु न देसिओ विही वा वि। दलियं पप्प निसेहो, हुज्ज विही वा जहा रोगे // 244 // अणुमित्तो वि न कस्सइ, बंधो परवत्थुपच्चया भणिओं। . तह वि य जयंति जइणो, परिणामविसोहिमिच्छंता // 245 / /