________________ // 210 // // 211 // // 212 // // 213 // . // 214 // // 215 // वज्जिज्ज मच्छरं परगुणेसु, तह नियगुणेसु उक्करिसं। दूरेणं परिवज्जसु, सुहसीलस्स संसग्गिं पासत्थो ओसन्नो, कुसील संसत्तनीअ अहाछंदो। एएहिं समाइन्नं, न आयरिज्जा न संसिज्जा पिज्जं भयं पओसो, पेसुन्नं मच्छरो रईहासो। अरईकलहो सोगो, जिणेहिं साहूण पडिकुट्ठो वंदिज्जंतो हरिसं, निंदिनंतो करिज्ज न विसायं। न हि नमिअनिदिआणं, सुगई कुगयं च बितिं जिणा अप्पा सुगइ साहइ, सुपउत्तो दुग्गइं च दुपउत्तो / तुट्ठो रुट्ठो अपरो, न साहओ सुगईकुगईणं लहुकम्मो चरमतणू, अणंतविरिओ सुरिंद पणओ वि। सव्वोवायविहिन्नू, तियलोयगुरू महावीरो' गोआलमाईएहिं, अहमेहिं उईरिए महाघोरे / जइ सहइ तहा सम्मं, उवसग्गपरीसहे सव्वे . अम्हारिसा कहं पुण, न सहति विसोहिअ व्व घणकम्मा। इअ भावंतो सम्मं, उवसग्गपरीसहे सहसु एवं पि कम्मवसओ, अरई चरणम्मि हुज्ज जई कह वि। तो भावणाइ सम्मं, इमाई सिग्धं निअत्तिज्जा सयलदुहाणावासो, गिहिवासो तत्थ जीव मा रमसु / जं दूसमाइ गिहिणो, उयरं पि दुहेण पूरिति जललवतरलं जीयं, अथिरा लच्छि विभंगुरो देहो। तुच्छा य कामभोगा, निबंधणं दुक्खलक्खाणं को चक्कवट्टिरिद्धि, चइउं दासत्तणं समहिलसइ / ' को वररयणाई मुत्तुं, परिगिण्हइ उवलखंडाई // 216 // // 217 // // 218 // // 219 // // 220 // // 221 // 14