________________ // 198 // // 199 // // 200 // // 201 // // 202 // // 203 // जिणवयणमहाविज्जा, सहाइणो अहव केइ सप्पुरिसा / रुंभंति तं पिं विसमिव, पडिमापडिवन्न-सड्डव्व अकुसलवयणनिरोहो, कुसलस्स उईरणं तहेगत्तं / भासाविसारएहिं, वइगुत्ती वन्निया एसा दंमंति तुरंगा वि हु, कुसलेहिं गया वि संजमिजंति / वयवग्धिं संजमिउं, निउणाण वि दुक्करं मन्ने सिद्धंतनीइकुसलो, कइ निगिण्हंति तं महासत्ता / सन्नायग-चोरग्गह-जाणग गुणदत्तसाहु व्व जो दुट्ठगइंदो इव, देहो असंजमेसु वटुंतो / नाणंकुसेण रुंभइ, सो भन्नइ कायगुत्त त्ति कुम्मुव्व सया अंगे, अंगोवंगाइं गोविउं धीरा / . . चिटुंति दयाहेडं, जह मग्गपवनओ साहू इय निम्मलवयकलिओ, समिई-गुत्तीसु उज्जुओ साहू। तो सुत्त अत्थ पोरिसि, कमेण सुत्तं अहिज्जिज्जा तम्मि अहीए विहिणा, विसेसकयउज्जमो तवविहाणे / दव्वाइअपडिबद्धो, नाणादेसेसु विहरिज्जा पडिबंधो लहुअत्तं, न जणुवयारो न देसविन्नाणं / नाणाईण अवुट्ठी, दोसा अविहारपक्खंमि गयणं व निरालंबो, हुज्ज धरामंडलं व सव्वसहो / मेरु व्व निप्पकंपो, गभीरो नीरनाहु व्व चंदु व्व सोमलेसो, सूरु व्व फुरंतउग्गतवतेओ। सीह व्व असंखोभो, सुसीयलो चंदणवणं व पवणु व्व अपडिबद्धो, भारुडविहंगमु व्व अपमत्तो / मुद्धवहु व्व वयारो, सारयसलिलं व सुद्धमणो // 204 // // 205 // // 206 // // 207 // // 208 // // 209 // 53