________________ जह नरवइणो आणं, अइक्कमंता पमायदोसेणं / . पावंति बंधवहरोहछिज्जमरणावसाणाई // 186 // तह जिणवराण आणं, अइक्कमंता पमायदोसेणं / पावंति दुग्गइपहे, विणिवाय सहस्सकोडीओ // 187 // जो जहव तहव लद्धं, गिण्हइ आहारउवहिमाईयं / समणगुणविप्पमुक्को, संसारपवड्ढओ भणिओ // 188 // धणसम्म-धम्मरुइमाइयाण, साहूण ताण पणओहं / कंठट्ठियजीएहिं वि, न एसणा पिल्लिया जेहिं' // 189 // पडिलेहिऊण सम्मं, सम्मं च पमज्जिऊण वत्थूणि / गिहिज्ज निक्खविज्ज व, समिओ आयाणसमिईए // 190 / / जइ घोरतवच्चरणं, असक्कणिज्जं न कीरए इण्हेिं / किं सक्का वि न कीरइ, जयणा सुपमज्जणाईया // 191 // तम्हा उवउत्तेणं, पडिलेहणपमज्जणासु जइयव्वं / इय दोसे सुगुणेसु वि, आहरणं सोमिलज्ज मुणी . // 192 // आवायाइ-विरहीए, देसे संपेहणाइ परिसुद्धे। . उच्चाराइ कुणंतो, पंचमसमियं समाणेइ // 193 // धम्मरुइमाइणो इह, आहरणं साहुणो गयपमाया / जेहिं विसमावइसु वि, मणसा वि न लंधिया एसा // 194 // अकुसलमणो निरोहो, कुसलस्स उईरणं तहेगत्तं / इय निट्ठिअमणपसरा, मणगुत्ति बिंति महरिसिणो // 195 // अवि जलही वि निरुज्झइ, पवणो वि खलिज्जए उवाएणं। . मन्ने न निम्मिओ च्चिय, को वि उवाओ मणनिरोहे // 196 // चिंतइ अचिंतणिज्जं, वच्चइ दूरं वि लंघइ गुरुं पि। गुरुआण वि जेण मणो, भमइ दुरायारमहिल व्व // 197 // .