________________ अप्पत्ते य कहित्ता, अणहिगयपरिच्छणे अआणाई। दोसा जिणेहिं भणिआ, तम्हा पत्ता-दुवट्ठावे // 138 // सेहस्स तिन्नि भूमी, जहन्नू तह मज्झिमा य उक्कोसा। राइंदिय सत्त चउमासिआ य छम्मासिया चेव // 139 // पुव्वोवट्ठपुराणे, करणजयट्ठा जहनिया भूमी। उक्कोसा उ दुम्मेहं, पडुच्च असदहाणं च / // 140 // एमेव य मज्झिमिया, अणिहिज्जते असद्दहंते अ। भावियमेहाविस्स वि, करणजयट्ठाय मज्झिमिया // 141 // इय विहिपडिवनवओ, जइज्ज छज्जीव-काय-जयणासु। . दुग्गइ-निबंधण च्चिय, तप्पडिवत्ती भवे इअरा // 142 // एगिदिएसु पंचसु, तसेसु कय-कारणा-णुमइ-भेयं / संघट्टण परिआवण, वेरमणं च य सुतिविहेण // 143 // जइ मिच्छदिविआण वि, जत्तो केसिं च जीव रक्खाए / कह साहूहिं न एसो, कायव्वो मुणियसारेहिं // 144 // निय पाणग्घाएण वि, कुणंति परपाणरक्खणं धीरा / विसतुंबउवभोगी, धम्मरुई इत्थुदाहरणं / // 15 // कोहेण व लोहेण व, भएण हासेण वा वि तिविहेण / / सुहमेअरं पि अलियं, वज्जसु सावज्जसयमूलं // 146 // लोए वि अलियवाई, वीससणिज्जा न होइ भुयंगु व्व। पावइ अवन्नवायं, पियराण वि देइ उव्वेयं // 147 // आराहिज्जइ गुरु देवयं च, जणणि व्व जणइ वीसंभं। पियबंधु व्व तोसं, अवितहवयणो जणइ लोए // 148 // मरणे वि समावडिए, जपंति न अन्नहा महासत्ता। जं न फलं निवपुट्ठा, जह कालगसूरिणो भयवं / // 149 //