________________ सम्मद्दिट्टी जीवो, गच्छइ नियमा विमाणवासीसु / जइ वि न गयसम्मत्तो, अहवा निबद्धाउओ पुदि // 102 // अचलियसम्मत्ताणं, सुरा वि आणं कुणंति भत्तीए / जह अमरदत्तभज्जाए, अहव निवविक्कमाईणं // 103 // अंतोमुत्तमित्तं पि, फासियं जेहिं हुज्ज सम्मत्तं / तेसिं अवड्डपुग्गल-परियट्टो चेव संसारो // 104 // लब्भंति अमरनरसंपयाओ, सोहग्गरूवकलियाओ। न य लब्भइ सम्मत्तं, तरंडयं भवसमुदस्स // 105 // खइयं खओवसमियं, वेअय-मुवसामियं च सासणयं / पंचविहं सम्मत्तं, पन्नत्तं वीयरागेहि // 106 // संका कंख विगिच्छा, पासंडीणं च संथव-पसंसा। तस्स य पंचइयारा, वज्जेयव्वा पयत्तेणं // 107 // पिंडप्पयाण हुणणं, सोमग्गहणाई लोय-किच्चाई / वज्जसु कुलिंगिसंगं, लोइअतित्थिसु गमणं च // 108 // मिच्छत्तभाविउ च्चिय, जीवो भवसायरे अणायम्मि। दढचित्तो वि छलिज्जइ, तेण इमो नणु कुसंगेहिं // 109 // जस्स भवे संवेओ, निव्वेओ उवसमो अ अणुकंपा। अस्थिक्कं जीवाइसु, नज्जङ तस्सस्थि संम्मत्तं // 110 // सव्वत्थ उचियकरणं, गुणाणुराओ रई य जिणवयणे / अगुणेसु अ मज्झत्थं, सम्मद्दिट्ठिस्स लिंगाई // 111 // चरणरहियं न जायइ, सम्मत्तं मुक्खसाहयं इक्कं / तो जइसु चरणकरणे, जइ इच्छसि मुक्खमचिरेण // 112 // किं चरणं कइ भेयं, तदरिहपडिवत्ति विहिपरूवणया। . उस्सग्ग-ववाएहि अ, तं कस्स फलं व किं तस्स // 113 // 55