________________ अरिहं देवो गुरूणो, सुसाहणो जिणमयं मह पमाणं / इच्चाइ सुहो भावो, सम्मत्तं बिति जगगुरुणो . . // 90 // भमिऊण अणंताई, पुग्गलपरियट्टसयसहस्साई / मिच्छत्तमोहियमई, जीवा संसारकंतारे // 91 // पावंति खवेऊणं, कम्माइं अहापवत्तकरणेणं / उवलनाएण कहमवि, अभिन्नपुव्वं तओ गंठिं // 92 // गंठिं भणंति मुणिणो, घणरागद्दोसपरिणइसरूवं / जम्मि अभिन्ने जीवा, न लहंति कयावि सम्मत्तं / / 93 // उल्लसिय-गरूय-विरया, धन्ना लहुकम्मुणो महप्पाणो। / आसन्नकालभवसिद्धि-या य तं केइ भिंदंति // 94 // जे उण अभव्वजीवा, अणंतसो गंठिदेसपत्ता वि / ते अकयगंठीभेया, पुणो वि वड्डंति कम्माइं // 95 // तं गिरिवरं व भित्तुं, अपुव्वकरणुग्गवज्जधाराए / अंतोमुत्तकालं, गंतुं अनियट्टि करणम्मि // 96 // पइसमयं सुज्झंतो, खविउं कम्माई तत्थ बहुयाई। . मिच्छत्तम्मि उइन्ने, खीणे-णुईअम्मि उवसंते // 97 // संसारगिम्हतविओ, तत्तो गोसीसचंदणुरसं व। अइपरमनिव्वुइकरं, तस्संते लहइ सम्मत्तं // 98 // . पुव्वपडिवन्ना पडिवज्जमाणया, निरयमणुयदेवा य / तीरिएसुं तु पवन्ना, बेइंदियमाइणो हुज्जा // 99 // पडिवज्जमाणया विहु, विगलिंदिय अ मणवज्जिया। हुंति उभयाभावो एगिदिसु सम्मत्तलद्धीए // 100 // जह धन्नाणं पुहई, आहारो नहयलं व ताराणं / .. तह नीसेसगुणाणं, आहारो होइ सम्मत्तं . // 101 // 54