________________ // 78 // // 79 // // 80 // // 81 // // 82 // // 83 // जं नंदिसेणमुणिणो, भवंतरे अमरसुंदरीणं पि / अइलोभणिज्जरूवं, संपत्तं तं तवस्स फलं सुर-असुर-देव-दाणव-नरिंदवरचक्कवट्टिपमुहेहिं / भत्तीइ संभमेण य, तवस्सिणो चेव थुव्वंति पत्थइ सुहाइं जीवो, रसगिद्धो कुणइ नेव विउलतवं / तंतूहि विणा पडयं, मग्गइ अहिलासमित्तेण कम्माइं भवंतरसंचियाई, अइकक्खडाइं वि खणेण / डझंति सुचिन्नेणं, तवेण जलणेण व वणाई होऊण विसमसीला, बहुजीवखयंकरा वि कूरा वि / निम्मलतवाणुभावा, सिझंति दढप्पहारि व्व संघगुरुपच्चणीए, तवाणुभावेण सासिउं बहुसो / विण्हुकुमार व्व मुणी, तित्थस्स पभावगा जाया हुंति महाकप्पसुरा, बोहिं लहिउं तवेण विहुअरया। जह खंदओ महप्पा, सीसो सिरिवीरनाहस्स कित्तिय मित्तं भणिमो, तवस्स सुह भावणाइ चिन्नस्स / भुवणत्तए वि न जओ, अन्नं तस्सत्थि गरुअयरं दाणं सीलं च तवो, उच्छुपुष्पं व निष्फलं हुज्जा। जइ न हिअयम्मि भावो, होइ सुहो तस्सिमे हेऊ सम्मत्तचरणसुद्धी, करणजओ निग्गहो कसायाणं / गुरुकुलवासो दोसाण, वियडणा भवविरागो य ‘विणओ वेयावच्चं, सज्झायरई अणाययणचाओ। परपरिवायनिवित्ती, थिरया धम्मे परिना य किं सम्मत्तं तं हुज्ज, किह णु कस्स व गुणा य के तस्सं / कइ भेयं अइआरा, लिगं वा किं भवे तस्स // 84 // // 85 // // 86 // // 87 // // 88 // // 89 // 43