________________ // 42 // // 43 // // 44 // . // 45 // // 46 // // 47 // देहो अ पुग्गलमओ, आहाराईहिं विरहिओ न भवे। तयभावे न य नाणं, नाणेण विणा कओ तित्थं एएहिं विरहियाणं, तवनियमगुणा भवे जइ समग्गा। आहारमाईयाणं, को नाम परिग्गहं कुज्जा तम्हा विहीइ सम्मं, नाणीणमुवग्गहं कुणंतेणं / भवजलहिजाणवत्तं, पवत्तिय होइ तित्थं पि कह दायगेण एयं, दायव्वं केसु वा वि पत्तेसु / दाणस्स दाइगाणं, अदायगाणं च गुणदोसो आसंसाइ विरहिओ, सद्धा रोमंचकंचुइज्जतो। कम्मक्खयहेउं चिय, दिज्जा दाणं सुपत्तेसु आरंभनियत्ताणं, अकिरित्ताणं अकारविताणं / धम्मट्ठा दायव्वं, गिहीहि धम्मे कयमणाणं इय मुक्खहेउदाणं, दायव्वं सुत्तवन्नियविहीए / अणुकंपादाणं पुण, जिणेहिं सव्वत्थ न निसिद्धं केसि चि होइ चित्तं, वित्तं अन्नेसिमुभयमन्नेसि / चित्तं वित्तं पत्तं, तिन्नि वि केसि चि धन्नाणं आरुग्गं सोहग्गं, आणिस्सरियमणिच्छिओ विहवो / सुरलोयसंपया विय, सुपत्तदाणाऽवरफलाइं दाउं सुपत्तदाणं, तम्मि भवे चेव निव्वुया के वि। अन्ने तईय भवेणं, भुत्तूण नरामरसुहाई जायइ सुपत्तदाणं, भोगाणं कारणं सिवफलं च। जह दुण्ह भाउयाणं, सुयाण निवसूरसेणस्स . पहसंतगिलाणेसु, आगमगाहीसु तह य कयलोए। उत्तरपारणगम्मि य, दिन्नं सुबहुफलं होइ // 48 // // 49 // // 50 // // 51 // // 52 // // 53 // 50.