________________ // 6 // // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // किं सुरगिरिणो गरुयं, जलनिहिणो किं व हुज्ज गंभीरं / किं गयणाओं विसालं, को य अहिंसा समो धम्मो कल्लाणकोडिजणणी, दुरंतदुरियारिवग्गनिट्ठवणी / संसारजलहितरणी, इक्कुच्चिय होइ जीवदया विउलं रज्जं रोगेहिं वज्जियं रूवमाउयं दीहं / अन्नं पि तं न सुक्खं, ज जीवदयाइ न हु सज्झं देविंदचक्कवट्टित्तणाई, भुत्तूण सिवसुहमणंतं / पत्ता अणंत जीवा, अभयं दाऊण जीवाणं तो अत्तणो हिएसी, अभय जीवाण दिज्ज निच्चं पि। जह वज्जाउहजम्मे, दिनं सिरिसंतिनाहेण जह मम न पियं दुक्खं, जाणिय एमेव सयल जीवाणं / न हणइ न हणावेई य, धम्मम्मि ठिओ स विनेओ जे उण छज्जीववहं, कुणंति अस्संजया निरणुकंपा। ते दुहलक्खाभिहया, भमंति संसारकंतारे . वहबंधमारणरया, जियाण दुक्खं बहुं उईरंता / हुंति मियावइ तणओ-व्व भायणं सयलदुक्खाणं नाऊण दुहमणंतं, जिणोवएसाउ जीवहयाणं / हुज्ज अहिंसानिरओ, जई निव्वेओ भवदुहेसु इच्छंतो य अहिंसं, नाणं सिक्खिज्ज सुगुरुमूलम्मि। सच्चिय कीरइ सम्मं, जं तव्विसयाइ विन्नाणे किं नाणं को दाया, को गहणविही गुणा य के तस्स / दारक्कमेण इमिणा, नाणस्स परूवणं वुच्छं। आभिणिबोहियनाणं, सुयनाणं चेव ओहिनाणं च। तह मणपज्जवनाणं, केवलनाणं च पंचमयं // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // 47