________________ जो जहवायं न कुणइ मिच्छद्दिट्ठी तओ हु को अन्नो? / वड्ढेइ अ मिच्छत्तं, परस्स संकं जणेमाणो // 504 // आणाए च्चिय चरणं, तब्भंगे जाण किं न भग्गंति ? | आणं च अइंक्वंतो, कस्साएसा कुणइ सेसं? // 505 // संसारो अ अणंतो, भट्ठचरित्तस्स लिङ्गजीविस्स / पंचमहव्वयतुंगो, पागारो भल्लिओ जेण // 506 // न करेमि त्ति भणित्ता, तं चेव निसेवए पुणो पावं / पच्चक्खमुसावाई, मायानियडीपसंगो य // 507 // लोए वि जो ससूगो, अलिअं सहसा न भासए किंचि / अह दिक्खिओ वि अलियं, भासइ तो किंच दिक्खाए ? // 508 // महव्वयअणुव्वयाई छंडेउं जो तवं चरइ अन्नं / . सो अन्नाणी मूढो, नावाबु(छ)ड्डो मुणेयव्वो // 509 // सुबहुं पासत्थजणं, नाऊणं जो न होइ मज्झत्थो / . न य साहेइ सकज्जं, कागं च करेइ अप्पाणं . // 510 // परिचिंतिऊण निउणं, जइ नियमभरो न तीरए वोढुं / परचित्तरंजणेणं, न वेसमित्तेण साहारो // 511 // निच्छयनयस्स चरणस्सुवघाए नाणदंसणवहो वि। ववहारस्स उ चरणे, हयम्मि भयणा उ सेसाणं // 512 // सुज्झइ जई सुचरणो, सुज्झइ सुस्सावओ नि गुणकलिओ / ओसंत्रचरणकरणो, सुज्झइ संविग्गपक्खरुई // 513 // संविग्गपक्खियाणं, लक्खणमेयं, समासओ भणियं / ओसन्नचरणकरणा वि जेण कम्मं विसोहंति - // 514 // सुद्धं सुसाहुधम्मं, कहेइ निंदइ य निययमायारं / सुतवस्सियाण पुरओ, होइ य सव्वोमरायणीओ // 515 // 43 2