________________ || 483 // // 484 // जो न वि दिणे दिणे संकलेइ के अज्ज अज्जिया मि गुणा ? / अगुणेसु अ नहु खलिओ, कह सो उ करिज्ज अप्पहिअं?॥ 480 // इय गणियं इय तुलियं इयं बहुआ दरिसियं नियमियं च / जइ तह वि न पडिबुज्झइ, किं कीरइ ? नूण भवियव्वं // 481 // किमगं तु पुणो जेणं, संजमसेढी सिढिलीकया होई। सो तं चिअ पडिवज्जइ, दुक्खं पच्छा उ उज्जमई // 482 // जइ सव्वं उवलद्धं, जइ अप्पा भाविओ उवसमेणं / कायं वायं च मणं, उप्पहेणं जह न देई हत्थे पाए न निक्खिवे, कायं चालिज्ज तं पि कज्जेणं / कुम्मो व्व सए अंगे, अंगोवंगाई गोविज्जा विकहं विणोयभासं अंतरभासं अवक्कभासं च। जं जस्स अणिट्ठिमपुच्छिओ य भासं न भासिज्जा // 485 // अणवट्ठियं मणो जस्स, झायइ बहुयाइं अट्टमट्टाई। . तं चितिअं च न लहइ, संचिणइ अ पावकम्माइं . जह जह सव्वुवलद्धं, जह जह सुचिरं तवो वणे वुच्छं। तह तह कम्मभरगुरू, संजमनिब्बाहिरो जाओ विज्जप्पो जह जह ओसहाई पिज्जेइ वायहरणाई। तह तह से अहिययरं वाएणाऊरिअं पुढें / // 488 // दड्डजउमकज्जकरं, भिन्नं संखं न होइ पुण करणं / लोहं च तंबविद्धं, न एइ परिकम्मणं किंचि // 489 // को दाही उवएसं, चरणालसयाण दुव्विअड्डाणं ? / इंदस्स देवलोगो, न कहिज्जइ जाणमाणस्स // 490 // दो चेव जिणवरेहिं, जाइ-जरा-मरणविप्पमुक्केहिं / लोगम्मि पहा भणिया, सुस्समण सुसावगो वा वि // 491 // . 41 // 486 // // 487 //