________________ // 264 // // 265 // // 266 / / // 267 // // 268 // // 269 // सारीरमाणसाणं, दुक्खसहस्साण वसणपरिभीया। नाणंकुसेण मुणिणो, रागगइंदं निरंभंति सुग्गइमग्गपईवं, नाणं दितस्स हुज्ज किमदेयं ? / जह तं पुलिदएणं, दिन्नं सिवगस्स नियगच्छिं सिंहासणे निसण्णं सोवागं सेणिओ नरवरिंदो / विज्जं मग्गइ पयओ, इअ साहुजणस्स सुअविणओ विज्जाए कासवसंतिआए दगसूअरो सिरि पत्तो। पडिओ मुसं वयंतो, सुअनिण्हवणा इय अपत्था सयलम्मि वि जियलोए, तेण इहं घोसिओ अमाघाओ। इक्कं पि जो दुहत्तं, सत्तं बोहेइ जिणवयणे सम्मत्तदायगाणं, दुप्पडियारं भवेसु बहुएसु।। सव्वगुणमेलियाहि वि, उवयारसहस्सकोडीहिं सम्मत्तम्मि उ लद्धे, ठड्याइं नरयतिरियदाराई। . दिव्वाणि माणुसाणि य मोक्खसुहाई सहीणाई . कुसमयसुईण महणं, सम्मत्तं जस्स सुट्ठियं हियए / तस्स जगुज्जोयकरं, नाणं चरणं च भवमहणं सुपरिच्छियसम्मत्तो, नाणेणालोइयऽत्थसब्भावो / निव्वणचरणाउत्तो, इच्छियमत्थं पसाहेइ . जह मूलताणए पंडुरम्मि दुव्वण्णरागवण्णेहिं। बीभच्छा पडसोहा, इय सम्मत्तं पमाएहिं नरएसु सुरवरेसु य, जो बंधइ सागरोवमं इक्कं / पलिओवमाण बंधइ, कोडिसहस्साणि दिवसेण पलिओवमसंखिज्जं, भागं जो बंधई सुरगणेसु / दिवसे दिवसे बंधइ, स वासकोडी असंखिज्जा . 23 // 270 // // 271 // // 272 // // 273 // // 274 // // 275 //