________________ // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // // 12 // जो अमणुन्नं असणाइ देइ साहूण दुट्ठपरिणामो / सो किर नागसिरी विव दुहपउरे भमइ संसारे सीलं सुगइनिहाणं नमंति देवा वि सीलमंताणं / दवदंति-सीय-रोहिणि-मणोरमसुभद्दनाएणं जहसत्ति तवं कुज्जा सुहजणणं सयलकम्मनिद्दलणं / वीर-विसल्ला-सउरी-वीरमई रुप्पिणि-महु व्व सुह परिणामो निच्चं कायव्वो जेण बंध-मोक्खाणं / सो परमंगं नाया दमगो भरहो इलापुत्तो भवचारयवासहरं तह सम्मइंसणं सुगइमूलं / ता सेमिय-सुलसा इव सम्मत्तेः निच्चला होह जिणबिंबदंसणाओ लहुकम्मा केइ इत्थ बुझंति / जह सेज्जंभवभट्टो अद्दयकुमारो य संबुद्धा जे जिणवराण पूर्य कुणंति ते हुंति सयलसुहभागी / दीवयसिह नवफुल्लय-पउमुत्तर-दुग्गनारि व्व तित्थयरवंदणेणं पाविज्जइ संपया सुराईणं / जह पत्ता बउलेणं तह सेदुय-नंदजीवेहि जो वंदणयं सम्मं साहूणं देइ सीलकलियाणं / सो लहइ सग्ग-मोक्खे हरि व्व दुक्खक्खयं कुणइ अव्वत्तस्स वि सामाइयस्स नर-सुरसमिद्धिमाईयं / फलंमउलं निद्दिटुं जह संपइणो नरिंदस्स आगमवयणं निसुयं थेवं पि महोवयारयं होइ / / नायं चिलाइपुत्तो तह रोहिणओ य नायव्वो नवकारपभावेणं जीवा पावंति परमकल्लाणं / गो-पड्डय-फणि-मिठा सोमपह-सुदंसणा नायं // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // // 18 // - 209